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310... नाट्य मुद्राओं का एक मनोवैज्ञानिक अनुशीलन विस्मयहस्त मुद्रा
देखें, पृ.260
कांजीवरम् से प्राप्त पल्लव काल की शिव मूर्ति में बायां हाथ नीचे की तरफ विस्मय मुद्रा में है। इसी भाँति एक अन्य मूर्ति का ऊपर उठा हाथ विस्मय मुद्रा में पहचाना गया है।
देखें, फलक 4, चित्र 4, पृ.260
बनर्जी ने यही मुद्रा एक अन्य मूर्ति में भी बताई है, जो शक या कुषाणकाल की है। (देखें, फलक 4, चित्र 3, पृ.260) भूमिस्पर्श मुद्रा
देखें, पृ.262 (बुद्धिस्ट आर्ट. पृ. 177)
सामान्य स्थिति में बैठकर एक हाथ से भूमि का स्पर्श करना भूमिस्पर्श मुद्रा कहलाती है। यह मुद्रा प्राय: बौद्ध मूर्तियों में देखी जाती है। अर्धपर्यंक मुद्रा
देखें, पृ. 262-63
बनर्जी ने सामान्य रूप से एक पैर मोड़कर बैठने की स्थिति को अर्धपर्यंक मुद्रा कहा है। समपाद मुद्रा
देखें, पृ. 264
ऊर्ध्वस्थित कायोत्सर्ग मुद्रा में पैरों की स्थिति ‘समपाद' में रहती है। बनर्जी ने भरहुत शिल्प में देवताओं को समपाद स्थिति में देखा है। (देखें, पृ. 265)
उन्होंने उज्जयिनी के सिक्कों पर भी यही मुद्रा पहचानी है। (देखें, फलक1, चित्र 7,8,20, पृ.265)
भीटा से प्राप्त एक मुहर पर गजलक्ष्मी को भी इसी मुद्रा में स्थित बताया है। यह खड़े होने का अत्यन्त लोकप्रिय प्रकार माना गया है। (देखें, फलक 11, चित्र 1, पृ.265)
जे.एन. बनर्जी ने कुछ नृत्यहस्त मुद्राओं की भी मूर्तियों में पहचान की है। उन्होंने कहा है कि नृत्त हस्त मुद्राएँ भरतमुनि के नाट्यशास्त्र और विष्णुधर्मोत्तरपुराण में विस्तृत रूप से वर्णित है यद्यपि चिदम्बरम् के प्रसिद्ध