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________________ भारतीय परम्परा में प्रचलित मुद्राओं की विधि एवं उद्देश्य......265 73. शमी मुद्रा यह मुद्रा शमी नामक वृक्ष से सम्बन्धित है। शमी वृक्ष का फल एवं छाल अति उपयोगी है। दुर्भिक्ष के समय में इसकी छाल के आटे की रोटी बनाकर उपयोग में ली जाती है। अतिसार के समय में इसका काढ़ा एवं गठिया पर इसकी छाल पीसकर एवं उसे गरम करके लगाने से ठीक होता है। विजयादशमी आदि कुछ विशिष्ट अवसरों पर इसका पूजन भी करते हैं। नाटक आदि में यह मुद्रा इसी शमी वृक्ष के गुणों का बोध कराती है। विधि दोनों हाथों में एक समान मुद्रा होती है। हाथ ऊपर उठे हुए हों, तर्जनी, मध्यमा और अंगठा ऊपर की तरफ फैले हुए हों, तर्जनी और मध्यमा एक-दूसरे को Cross करते हुए हों, अनामिका और कनिष्ठिका हथेली की तरफ मुड़ी हुई हों तथा दोनों हाथों को कलाई पर Cross . शमी मुद्रा करते हुए रखने पर शमी मुद्रा बनती है। यह मुद्रा छाती के स्तर पर धारण की जाती है।59 लाभ चक्र- मूलाधार एवं मणिपुर चक्र तत्त्व- पृथ्वी एवं अग्नि तत्त्व ग्रन्थिगोनाड्स, एड्रीनल एवं पैन्क्रियाज केन्द्र- शक्ति एवं तैजस केन्द्र विशेष प्रभावित अंग- मेरूदण्ड, गुर्दे, पाचन तंत्र, नाड़ी तंत्र, यकृत, तिल्ली, आँतें।
SR No.006253
Book TitleNatya Mudrao Ka Manovaigyanik Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages416
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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