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लाभ
भारतीय परम्परा में प्रचलित मुद्राओं की विधि एवं उद्देश्य 263
चक्र- अनाहत एवं आज्ञा चक्र तत्त्व- वायु एवं आकाश तत्त्व ग्रन्थि - थायमस एवं पीयूष ग्रन्थि केन्द्र - आनन्द एवं दर्शन केन्द्र विशेष प्रभावित अंगहृदय, फेफड़ें, भुजाएं, रक्त संचरण तंत्र, स्नायु तंत्र एवं निचला मस्तिष्क।
71. शम्भु मुद्रा
यह मुद्रा नृत्य-नाटक आदि में एक विशेष देवता को दर्शाने के प्रयोजन
से की जाती है।
स्वरूपतः यह शिव भगवान की सूचक है।
विधि
हथेली
दायीं बाहर की ओर, तर्जनी, मध्यमा, कनिष्ठिका और
अंगूठा एक साथ ऊपर की तरफ, अनामिका हथेली के भीतर झुकी हुई रहें। बायीं हथेली भी
सामने की तरफ, मध्यमा और तर्जनी
अंगूठे के अग्रभाग से स्पर्श किये हुए तथा अनामिका
शम्भु मुद्रा
और
कनिष्ठिका उर्ध्वाभिमुख रहने पर शम्भु मुद्रा बनती है। 57
लाभ
चक्र - सहस्रार एवं आज्ञा चक्र तत्त्व- आकाश तत्त्व ग्रन्थि - पिनियल एवं पीयूष ग्रन्थि केन्द्र - ज्योति एवं दर्शन केन्द्र विशेष प्रभावित अंग - स्नायु तंत्र, आंख एवं मस्तिष्क ।