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भारतीय परम्परा में प्रचलित मुद्राओं की विधि एवं उद्देश्य
247 संस्थान, यकृत, तिल्ली, नाड़ी तंत्र, आँतें, मल-मूत्र अंग, प्रजनन अंग, गुर्दे, ऊपरी मस्तिष्क एवं आँखें।
54. वरूण मुद्रा
यह मुद्रा नाट्य कला में एक विशेष देव वरुण की सूचक मानी गई है। पुराणों के अनुसार वरूण देवता पश्चिम दिशा का अधिपति है, इसकी गणना दिक्पालों में की जाती है ।
यह मुद्रा दिक्पाल (दिशा रक्षक) वरूण देवता से सम्बन्धित है।
विधि
दायीं
हथेली
सामने की तरफ, अंगुलियाँ और अंगूठा एक साथ ऊपर की तरफ फैले हुए और हल्के से झुके हुए रहें। बायीं हथेली
मध्यभाग की तरफ, अंगुलियाँ मुट्ठी रूप में तथा अंगूठे को
ऊपर की ओर सीधा
रखने पर वरूण मुद्रा
बनती है।
यह मुद्रा कंधे के स्तर पर धारण की
जाती है 42
लाभ
वरुण मुद्रा
चक्र- स्वाधिष्ठान एवं विशुद्धि चक्र तत्त्व - जल एवं वायु तत्त्व ग्रन्थि - प्रजनन, थायरॉइड एवं पेराथायरॉइड ग्रन्थि केन्द्र- स्वास्थ्य एवं विशुद्धि केन्द्र विशेष प्रभावित अंग - मल-मूत्र अंग, प्रजनन अंग, गुर्दे, कान, नाक, गला, मुँह, स्वर यंत्र ।