SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 267
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अभिनय दर्पण में वर्णित अतिरिक्त मुद्राओं के सुप्रभाव......201 24. द मिरर ऑफ गेश्चर, 41 25. करपृष्ठोपरि न्यस्तो, यत्र हस्तस्त्वधोमुखः । किंचित् प्रसारितांगुष्ठ, कनिष्ठो मत्स्यनामकः । अभिनय दर्पण, श्लोक 196 26. मृगशीर्षे त्वन्यतरे, स्वोपर्येकः स्थिते यदि । कनिष्ठांगुष्ठयोयोगाद्वराहकर ईरितः ॥ अभिनय दर्पण, श्लोक 198-99 27. तिकतलस्थितावर्ध चन्द्रावंगुष्ठयोगतः। . गरुऽहस्त इत्याहु, गरुडाथै नियुज्यते ॥ (क) अभिनय दर्पण, श्लोक 200 (ख) द मिरर ऑफ गेश्चर, 41 (ग) GDE, 181 28. सर्पशीर्षस्वस्तिकं च, नागबन्ध इतीरितः। (क) अभिनय दर्पण, श्लोक 201 (ख) द मिरर ऑफ गेश्चर, 41 29. चतुरे चतुरं न्यस्य, तर्जन्यंगुष्ठ-मोक्षतः । खट्वाहस्तो भवेदेष, खट्वाशिविकयोः स्मृतः ॥ अभिनय दर्पण, श्लोक 201 30. द मिरर ऑफ गेश्चर, पृ. 41 31. अभिनय दर्पण, श्लोक 21
SR No.006253
Book TitleNatya Mudrao Ka Manovaigyanik Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages416
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy