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अभिनय दर्पण में वर्णित अतिरिक्त मुद्राओं के सुप्रभाव......199 अभिनय दर्पण छठी-सातवीं सदी का एक सुप्रसिद्ध ग्रन्थ है। जैसा कि ग्रन्थ के नाम से ही ज्ञात हो जाता है, यह अभिनय से सम्बन्धित रचना है। मुद्रा विषयक यह एक महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ है। इसमें वर्णित अधिकांश मुद्राओं का उल्लेख भरत नाट्य शास्त्र में भी मिलता है। तदुपरान्त इनका पुनर्डल्लेख करने का कारण इसका विस्तृत स्वरूप वर्णन है। इस वर्णन के माध्यम से इन्हें समझने एवं आचरित करने में सविधा होगी। नाटक, नृत्य आदि में रुचि रखने वाले लोग इनके वर्णन के आधार पर अपने रोगों का शीघ्र निदान कर सकेंगे। सन्दर्भ-सूची 1. अभिनय दर्पण, श्लोक 89-92 2. अभिनय दर्पण, श्लोक 172-75 3. अभिनय दर्पण, श्लोक 204-15 4. अभिनय दर्पण, श्लोक 116-25 5. अभिनय दर्पण, श्लोक 103 6. द मिरर ऑफ गेश्चर, 28 7. अस्मिननामिकांगुष्ठौ, श्लिष्टौ चान्याः प्रसारिताः । मयूर हस्त: कथितः, करटीकाविचक्षणैः ॥
अभिनय दर्पण, श्लोक 108 8. द मिरर ऑफ गेश्चर, 29 . 9. (क) सूच्यामंगुष्ठमोक्षे तु करश्चन्द्रकला भवेत ।
अभिनय दर्पण, श्लोक 132 (ख) द मिरर ऑफ गेश्चर, 32 10. (क) मध्यमानामिका ग्राभ्यामंगुष्ठौ मिश्रितौ यदि । शेषौ प्रसारितौ यत्र, स सिंहास्य-करो भवेत ।
अभिनय दर्पण, श्लोक 142-143 (ख) द मिरर ऑफ गेश्चर, 34 11. (क) निकुंचनयुतांगुष्ठ, कनिष्ठस्तु त्रिशूलकः।
अभिनय दर्पण, श्लोक 165 (ख) द मिरर ऑफ गेश्चर, 38