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170... नाट्य मुद्राओं का एक मनोवैज्ञानिक अनुशीलन 19. पक्षप्रद्योतक मुद्रा 20. दण्डपक्ष मुद्रा 21. गरूड़पक्ष मुद्रा 22. ऊर्ध्वमण्डली मुद्रा 23. पार्श्वमण्डली मुद्रा 24. उरोमण्डली मुद्रा 25. उर:पार्धिमण्डली मुद्रा 26. मुष्टि स्वस्तिक मुद्रा 27. नलिनी पद्मकोश मुद्रा 28. अलपद्म मुद्रा 29. उल्वण मुद्रा 30. वलित मुद्रा 31. ललित मुद्रा 32. वरदाभय मुद्रा।13
वर्णित अध्याय में भरत नाट्य शास्त्र से समानता रखने वाले ग्रन्थों का उल्लेख किया गया है। इससे इन मुद्राओं की प्रामाणिकता सुसिद्ध हो जाती है। इसी के साथ भिन्न-भिन्न क्षेत्र से संबंध रखने वाले साहित्य में मुद्राओं का महत्त्व भी प्रमाणित हो जाता है। प्रायः ग्रन्थों का रचनाकाल भी अलग-अलग है। इससे आदिकाल से अब तक मुद्राओं का साम्राज्य स्वयंसिद्ध हो जाता है। संदर्भ सूची 1. पताकस्त्रिपताकश्च, तथा वैकतरमुखः । अर्धचन्द्रो परालश्च, गुरुतुण्डस्तथापरः ॥1॥
मुष्टिश्च शिखिराख्यश्च, कपित्थः खटकामुखः ।
सूच्यर्धः पद्मकोशश्च, मृगशीर्षो मृगस्य च ।।2।। लाङ्गुल: कालपद्मश्च, चतुरो भ्रमरस्तथा। हसास्यो हंसपक्षश्च, संदंशो मुकुलस्तथा।।3॥
असंयुताः करा ह्येते, द्वाविंशतिरुदाहृताः।
अथ संयुक्ततो हस्तान्, गदतस्तान्निबोध मे।।4।। अंजलिश्च कपोतश्च, कर्कट: स्वस्तिकस्तथा। खटको वर्धमानश्च, उत्सङ्गो निषिधस्तथा।।5।।
डोल: पुष्पपुटश्चैव, तथा मकर एव च।
गजदन्तोऽवहित्थश्च, वर्धमानस्तथैव च ।।6।। एते वै संयुता हस्ता, मया प्रोक्तास्त्रयोदश। नृत्तहस्तायुपश्चैव, भूयो नाम्नि निबोधत।।7।
चतुरस्रस्तथा वृत्तस्, तथा लघुमुखौ स्मृतौ।
तथा चैव तु विज्ञेयौ, ह्यरालखटकामुखौ।।४।। आविद्धवक्रसंव्याख्यौ, रेचितावद्धरचितौ। अवहित्थः पल्लवितो, नितम्ब: केशवर्धनौ।।।।
लताख्यौ करिहस्तौ च, पक्षोद्योताऽर्थवर्धितौ। ज्ञेयौ गरुडपक्षौ च, दण्डपक्षौ तथैव च।।10।