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________________ 154... नाट्य मुद्राओं का एक मनोवैज्ञानिक अनुशीलन 18. द मिरर ऑफ गेश्वर, 29-30 19. (क) द मिरर आफ गेश्वर, 30 (ख) इण्डियन क्लासीकल डान्स, 134 20. अरालस्य यदा वक्रानामिका त्वङ्गुलिर्भवेत् । शुकतुण्डस्तु स करः, कर्म चास्य निबोधत ॥ नाट्य शास्त्र, 9/49 21. (क) द मिरर आफ गेश्वर, 30 (ख) इण्डियन क्लासीकल डान्स, 134 (10) 22. अङ्गुल्योयस्य हस्तस्य, तलमध्येऽग्रसंस्थिताः। तासामुपरि चाङ्गुष्ठः, स मुष्टिरिति संजितः ।। नाट्य शास्त्र, 9/51 23. हिन्दी शब्द सागर, भा.9, पृ.4741 24. (क) द मिरर आफ गेश्वर, 30-31 (ख) इण्डियन क्लासीकल डान्स, 134 (11 और 12 ) 25. अस्यैव तु यदा मुष्टे, रूर्ध्वोऽङ्गुष्ठः प्रयुज्यते । हस्तः स शिखरो नाम, तथा ज्ञेयः प्रयोक्तृभिः ॥ नाट्य शास्त्र, 9/53 26. (क) द मिरर आफ गेश्वर, 31 (ख) इण्डियन क्लासीकल डान्स, 135 (13-14) 27. अस्यैव शिखराख्स्य, मुखेऽङ्गुष्ठनिपीडिता । यदा प्रदेशिनी वक्रास, कपित्थस्तदा स्मृतः ।। नाट्य शास्त्र, 9/55 28. हिन्दी शब्द सागर, भा.2, पृ. 746 29. हिन्दी शब्द सागर, भा. 3, पृ. 1119 30. द मिरर ऑफ गेश्वर 31-32 31. उत्क्षिप्तवक्रा तु, यदानामिका सकनीयसी । अस्यैव तु कपित्थस्य, तदासौ खटकामुखः ॥ नाट्य शास्त्र, 9/57
SR No.006253
Book TitleNatya Mudrao Ka Manovaigyanik Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages416
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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