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________________ भरतमुनि रचित नाट्य शास्त्र की मुद्राओं का स्वरूप......141 22. ऊर्ध्वमण्डलिन् मुद्रा ऊर्ध्व अर्थात ऊपर, मण्डलिन् अर्थात मण्डल, घेरा, अथवा गोलाकार। इस मुद्रा में दोनों हाथ दण्ड पक्ष मुद्रा में निर्मित कर ऊपर की ओर विवर्तित अर्थात गोल घुमाए जाते हैं अत: इसे उर्ध्वमण्डलिन् मुद्रा कहा गया है। ___ यह मुद्रा अपने नाम के अनुसार हाव-भाव प्रस्तुत करती है। द्वितीय विधि नाट्य शास्त्र के मतानुसार जिस मुद्रा में दोनों हाथ दण्ड पक्ष में रचित कर ऊपर की ओर गोल घुमाए जाते हैं वह ऊर्ध्वमण्डलिन् मुद्रा कहलाती है।132 उर्ध्वमण्डलिन् मुद्रा-2 23. पार्श्वमण्डलिन् मुद्रा शरीर का दायां अथवा बायां हिस्सा पार्श्व कहलाता है। यह मुद्रा बनाते समय ऊर्ध्वमण्डलिन् मुद्रा में स्थित हाथों को एक पार्श्व में रख देते हैं इसलिए यह मुद्रा पार्श्वमण्डलिन् कहलाती है।
SR No.006253
Book TitleNatya Mudrao Ka Manovaigyanik Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages416
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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