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भरतमुनि रचित नाट्य शास्त्र की मुद्राओं का स्वरूप......137 प्रथम विधि ___दोनों हथेलियों को नितम्ब के समभाग में आगे की ओर लायें, फिर हथेलियों के मुखभाग को ऊपर की तरफ रखें, अनामिका को हल्के से हथेली की ओर मोड़ें तथा शेष अंगुलियों एवं अंगूठों को अपनी दिशा में फैलाये रखने पर पक्षप्रद्योत मुद्रा बनती है।127
पक्षप्रयोत मुद्रा-1
लाभ
चक्र- मूलाधार एवं आज्ञा चक्र तत्त्व- पृथ्वी एवं आकाश तत्त्व ग्रन्थिप्रजनन एवं पीयूष ग्रन्थि केन्द्र- शक्ति एवं दर्शन केन्द्र विशेष प्रभावित अंगमेरूदण्ड, गुर्दे, पाँव, निचला मस्तिष्क, स्नायु तंत्र।