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________________ 116... नाट्य मुद्राओं का एक मनोवैज्ञानिक अनुशीलन 5. विप्रकीर्ण मुद्रा विप्रकीर्ण शब्द का अन्वर्थक अर्थ होता है बिखरा हुआ, छितराया हुआ, इधर-उधर पड़ा हुआ, अस्त व्यस्त, अव्यवस्थित आदि। इस मुद्रा में प्रायः अंगुलियाँ बिखरी हुई रहती है इस कारण इसे विप्रकीर्ण मुद्रा कहा गया है। यह नाट्य मुद्रा वस्त्रों को खोलने और उनके छोड़ने की मुद्रा है। इस मुद्रा में हाथों को ढीला रखते हैं तथा इसमें गति आवश्यक है। प्रथम विधि हथेलियों को थोड़ासा ऊपर उठाते हुए बाहर की ओर करें। तर्जनी, मध्यमा, कनिष्ठिका और अंगूठों को ऊपर की तरफ फैलायें, अनामिकाओं को हथेली के भीतर मोड़ें तथा दोनों हाथों को कलाई पर क्रोस करते हुए रखने से विप्रकीर्ण मुद्रा बनती है। यह मुद्रा छाती के बायीं तरफ धारण कर हाथों को तुरन्त अलग कर देते हैं। 102 JUNE ग विप्रकीर्ण मुद्रा- 1 लाभ इस मुद्रा के सुपरिणाम तलमुख मुद्रा के समान जानने चाहिए।
SR No.006253
Book TitleNatya Mudrao Ka Manovaigyanik Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages416
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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