________________
भरतमुनि रचित नाट्य शास्त्र की मुद्राओं का स्वरूप......81 हृदय, फेफड़ें, भुजा, रक्त संचरण तंत्र, पाचन तंत्र, नाड़ी तंत्र, स्वर तंत्र, यकृत, तिल्ली, आँते, नाक, कान, गला, मुँह। 24. ताम्रचूड़ मुद्रा (प्रथम)
ताम्रचूड़ का एक अर्थ मुर्गा होता है। यहाँ इस मुद्रा का अभिप्राय मुर्गे से है। मुर्गा एक ऐसा पक्षी है जो प्रभात काल होने की पूर्व सूचना देता है।
यह पक्षी सफेद, पीला और लाल आदि कई रंगों का तथा खड़ा होने पर प्रायः एक हाथ से कुछ कम ऊँचा होता है। यह अपनी शानदार चाल और प्रभात के समय 'कूकडू कू' बोलने के लिए प्रसिद्ध है।
इस मुद्रा को नाटकों में कलाकारों के द्वारा एवं हिन्दु परम्परा में देवीदेवताओं के द्वारा अथवा उनके लिए धारण की जाती है। यह मुद्रा चित्र के अनुसार सारस, मूर्गा या लिखने की सूचक है। प्रथम विधि ___दायी हथेली को आगे की तरफ करें, तर्जनी अंगुली को हल्की सी हथेली को ओर झुकायें, मध्यमा, अनामिका
और कनिष्ठिका को हथेली के भीतर मोड़ें तथा अंगूठे के अग्रभाग को मध्यमा अंगुली के अग्रभाग से योजित करने पर ताम्रचूड़ मुद्रा बनती
तामह मुद्रा-1