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________________ उपसंहार ...87 दृष्टि से समस्त मुद्राओं को चार भागों में विभक्त कर सकते हैं 1. नाट्य मुद्राएँ 2. योग मुद्राएँ, 3. पूजोपासना संबंधी मुद्राएँ और 4. कलात्मक मुद्राएँ । 1. नाट्य परम्परा की मुद्राएँ युग के आदिकाल में संकेत आदि के रूप में एवं नाट्य-नृत्य आदि के रूप में प्रयुक्त मुद्राएँ इस श्रेणी की मुद्राएँ भरतमुनि रचित नाट्य शास्त्र, विष्णुधर्मोत्तर पुराण, अभिनव दर्पण, संगीतरत्नाकर, नृत्यरत्न कोश, समरांगण सूत्रधार आदि ग्रन्थों में प्राप्त होती हैं। 2. यौगिक परम्परा की मुद्राएँ भारतीय ऋषि-महर्षियों द्वारा उपदिष्ट एवं आचरित मुद्राएँ, जैसे- हठयोग सम्बन्धी और मुद्रा विज्ञान तत्त्व योग सम्बन्धी मुद्राएँ यौगिक मुद्राएँ कहलाती हैं। इस विषयक मुद्राएँ योग चूड़ामणि उपनिषत्, योग तत्त्वोपनिषत्, हठयोग प्रदीपिका, घेरण्ड संहिता, शिव संहिता, गोरक्ष संहिता, नारदीय पुराण, ब्रह्म पुराण आदि में उपलब्ध होती हैं। 3. पूजोपासना परम्परा की मुद्राएँ वीतराग पुरुष, आप्त पुरुष अथवा देवी - देवताओं की आराधना निमित्त दर्शायी जाने वाली मुद्राएँ तीसरी श्रेणी में आती हैं। इस विषयक मुद्राएँ जैन, हिन्दू एवं बौद्ध तीनों परम्पराओं में प्राप्त होती हैं। 4. कला परम्परा की मुद्राएँ भारतीय शिल्पकला एवं मूर्तिकला में अंकित मुद्राएँ जैसे मोहनजोदड़ों, खजुराहो, सिन्धु घाटी की सभ्यता, मथुराकला, गुप्तकला, मौर्यकला, कुषाणकला, साँची स्तूप, उदयगिरि - खण्डगिरि शिल्प आदि के अवशेषों में दर्शित मुद्राएँ कला परम्परा की मुद्राएँ कही जाती है। इसके अतिरिक्त अनभ्यास सम्बन्धी, अभ्यास सम्बन्धी, अभ्यास-अनभ्यास सम्बन्धी, संस्कार सम्बन्धी, तन्त्र प्रधान सम्बन्धी आदि मुद्रा योग के अनेक प्रकार हैं। यदि धार्मिक परम्पराओं की अपेक्षा विचार करें तो कहा जा सकता है कि मुद्रा योग की प्रणाली हिन्दू, बौद्ध और जैन धर्म में अल्पाधिक रूप से आज भी विद्यमान है। इतना ही नहीं, मुस्लिम नमाज पढ़ते समय लगभग नौ मुद्राओं का प्रयोग करते हैं। यवन और ईसाई धर्म के अनुयायी विशेष अवसरों पर अपने
SR No.006252
Book TitleMudra Prayog Ek Anusandhan Sanskriti Ke Aalok Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages164
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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