________________
86...मुद्रा योग एक अनुसंधान संस्कृति के आलोक में बीमार हो जाते हैं। मुद्रा योग से विश्व एवं शरीर दोनों को सन्तुलित रखा जा सकता है। ___ यहाँ यह ध्यातव्य है कि शरीर की स्वस्थता के आधार पर ही मन और चेतना स्वस्थ रह सकते हैं। मुद्रायें शरीर, मन और चेतना तीनों को प्रभावित करती हैं। अत: स्पष्ट होता है कि मुद्रा साधना से समस्त प्रकृति को संतुलित रखते हुए उसे अनावश्यक उपद्रवों से बचाया जा सकता है तथा वैश्विक शान्ति और शारीरिक स्वस्थता का अनुभव कर सकते हैं।
दूसरा प्रश्न होता है कि मुद्रा के द्वारा पंच तत्त्वों को संतुलित कैसे किया जा सकता है? इस सम्बन्ध में इतना तो स्पष्ट है कि मानव शरीर पंच तत्त्वों से बना है। इस शरीर में हाथ सबसे महत्त्वपूर्ण अंग है। प्रकृति ने पांचों तत्त्वों के नियन्त्रण की सत्ता हाथों को दी है यानि पाँच तत्त्वों का प्रतिनिधित्व पाँचों अंगुलियाँ करती हैं उन अंगुलियों की सहायता से तत्त्वों को घटा-बढ़ाकर संतुलित किया जा सकता है।
___ मुद्रा विज्ञान के अनुसार प्रत्येक अंगुली से अलग-अलग प्रकार का विद्युत् प्रवाह नि:सृत होता है। उच्चतम साधना के द्वारा उस शक्ति प्रवाह को बढ़ाया भी जा सकता है और उससे अच्छे-बुरे, शुभ-अशुभ प्रभाव भी देखे जा सकते हैं।
नियमत: हस्तमुद्राओं के माध्यम से अंगुलियों को मिलाने, दबाने, स्पर्श करने, मरोड़ने तथा कुछ समय तक विशेष आकृति बनाये रखने से तत्त्वों में परिवर्तन होता है। जैसे किसी भी अंगुली के अग्रभाग को अंगूठे के अग्रभाग से मिलाने पर बढ़ा हुआ तत्त्व संतुलित हो जाता है। इसी तरह अंगूठे के अग्रभाग को किसी भी अंगुली के मूल भाग से स्पर्शित करने पर उस अंगुली तत्त्व की शरीर में अभिवृद्धि होती है। इसी तरह किसी भी अंगुली के अग्रभाग को अंगूठे के मूल भाग (निचले हिस्से) से संयुक्त करने पर उस अंगुली तत्त्व का शरीर में ह्रास होता है। इस भाँति अंगुलियों के द्वारा शरीर में पंच तत्त्व को घटाने-बढ़ाने का साधारण नियम है।
वस्तुतया आंतरिक भावों का शारीरिक या मानसिक अभिव्यक्तिकरण मुद्रा है। सामान्य तौर पर मानव की सहज-असहज, आवश्यक-अनावश्यक जितनी भी शारीरिक प्रवृत्तियाँ (पोज) हैं। उन सभी को मुद्रा संज्ञा प्राप्त है जैसे- आसनों की संख्या असीमित है वैसे ही मुद्राओं की संख्या भी अनगिनत है। अध्ययन की