________________
उपसंहार ...83 को मुद्रा कहा जाता है। अर्थशास्त्र के अनुसार कागज के नोट को भी मुद्रा माना जाता है। वहाँ उसका अर्थ करन्सी ग्रहण किया गया है। नोट को मुद्रा बनाने का एक कारण यह भी है कि वह राजमुद्रा से प्रमाणीकृत होता है। किसी अधिकारी की सील अथवा पद मुद्रा को भी मुद्रा कहा जाता है, क्योंकि उसकी छाप संबंधित अधिकारी का प्रमाणीकरण माना जाता है। प्राचीनकाल से राज मुद्रांकित लेख को ही प्रमाण माना जाता रहा है।
मुद्रा का एक अर्थ छाप है इसलिए मुद्रित का अर्थ छापा हुआ होता है। आजकल अंग्रेजी में जिसे सील कहते हैं उसे पूर्वकाल में मुद्रिका कहा जाता था। आधुनिक युग में सील को ग्रहण करने के लिए काठ की मूठ लगी रहती है, प्राचीन युग में उस स्थान पर अधिक सुरक्षा की दृष्टि से मुद्रिका को अंगुली में पहना जाता था। अनामिका अंगुली में मुद्रा धारण करने का सम्बन्ध उपासना परम्परा से भी रहा है।
पोस्ट ऑफिस का सारा कार्य मुद्रा के बल पर ही चलता है। शासकीय कार्यालयों के सभी महत्त्वपूर्ण अभिलेखों के आदेशों का पालन इसी मुद्रा के कारण होता है। उक्त कथितांश से यह सिद्ध होता है कि लोक व्यवहार में मुद्रा किसी भी लेख को अथवा विनिमय के साधन को प्रमाणित करने का मुख्य आधार है। ___मुद्रा का एक अर्थ मूंदना भी होता है जैसे “दृष्ट का मुखमुद्रण करना ही अच्छा है"इस तरह के वाक्यों में इसका प्रयोग किया जाता है।
मुद्रा का अर्थ छापना भी होता है इसीलिए मुद्राओं के प्रयोग के द्वारा मनस पटल पर देवशक्ति की अमिट छाप पड़ने का भाव समाविष्ट है।
योगिनीतन्त्र में गेहूँ, चने, चावल आदि भुनकर जो चबाया जा सकें, उन्हें मुद्रा कहा गया है। - नृत्य आदि अभिनय में अंगों के संचालन विशेष की क्रिया को मुद्रा कहा गया है। यद्यपि भाव-भंगिमा को दर्शाने के लिए यह अंग संचालन विश्व के सभी सभ्य, असभ्य एवं अर्धसभ्य समाजों में प्रचलित है किन्तु इसका सूक्ष्म और रहस्य गर्भित वर्णन तयुगीन कृतियों में उपलब्ध होता है। आज के फूहड़ अंग प्रदर्शन के स्थान पर यदि सिनेमा जगत के कलाकारों को उन भाव प्रकाशन की सूक्ष्म मुद्राओं का ज्ञान कराया जा सकें तो दर्शकों पर कहीं अधिक स्थायी और स्वस्थ प्रभाव डाला जा सकता है।