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जैन एवं इतर परम्परा में उपलब्ध मुद्राओं की सूची ...59 जयाख्यसंहिता में मन्त्र भेद के आधार पर मुद्राओं को तीन भागों में बाँटा गया है। प्रथम विभाग में गर्भमन्त्रों की 26 मुद्राएँ निर्दिष्ट की गई हैं। द्वितीय विभाग में आधारासनमन्त्र की प्रधान रूप से आठ एवं सामान्य रूप से तेरह मुद्राओं का उल्लेख किया गया है। तृतीय विभाग में क्षेत्रेश आदि बीज की 21 मुद्रायें कही गई है।36 ___ तन्त्रराजतन्त्र में देवताओं को प्रसन्न करने से सम्बन्धित निम्न मुद्राओं का सविधि वर्णन है।37 ___ 1. आवाहनी मुद्रा 2. स्थापिनी मुद्रा 3. सन्निरोधनी मुद्रा 4. अवगुण्ठनी मुद्रा 5. सन्निधापिनी मुद्रा 6. बाण मुद्रा 7. धनुष मुद्रा 8. पाश मुद्रा 9. अंकुश मुद्रा 10. नमस्क्रिया मुद्रा 11. संक्षोभिणी मुद्रा 12. द्राविणी मुद्रा 13. आकर्षिणी मुद्रा 14. वश्या मुद्रा 15. उन्मादिनी मुद्रा 16. महाकुंशा मुद्रा 17. खेचरी मुद्रा 18. बीज मुद्रा 19. योनि मुद्रा 20. शक्तिस्थापिनी मुद्रा।
ज्ञानार्णवतन्त्र में तीस से अधिक मुद्राएँ बतायी गयी है तथा ये मुद्रायें भी शिव आदि देवताओं के सम्मुख उन्हें प्रसन्न करने के लिए प्रदर्शित की जाती है।38
हेमाद्रि ने (13वीं शती) पंकज, निष्ठुर, व्योम एवं मुकुल नामक मुद्राओं पर प्रकाश डाला है।39
मित्रमिश्र ने आझिकप्रकाश (वीर मित्रोदय का एक अंश ) में गायत्रीजाप के समय प्रदर्शित की जाने वाली 24 मुद्राओं का स्वरूप वर्णन किया है।40 वीरमित्रोदय के पूजा प्रकाश में निम्न 14 मुद्राएँ भी प्रदर्शित करने हेतु कही गई हैं-41 1. आवाहनी 2. स्थापनी 3. संमुखीकरणी 4. सन्निरोधनी 5. प्रसाद 6. अवगुण्ठन 7. शंख 8. चक्र 9. गदा 10. पद्म 11. मुसल 12. खड्ग 13. धनुष् 14. बाण मुद्रा।
देवणभट्ट ने स्मृतिचन्द्रिका में देव पूजा के समय प्रदर्शित की जाने वाली 24 मुद्राओं का नामोल्लेख किया है।42
शंकराचार्य विरचित प्रपंचसार की टीका में गीर्वाणेन्द्र सरस्वती ने (लगभग 14-15वीं शती) 54 मुद्राओं को प्रदर्शित करने की विधियाँ प्राचीनसंग्रह ग्रन्थ से उद्धृत करके दी है।43
पांचरात्र की अन्य संहिताओं में षडंग मुद्राओं का वर्णन है, जबकि