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________________ 38...मुद्रा योग एक अनुसंधान संस्कृति के आलोक में (कालखण्ड) के अन्त में भगवान आदिनाथ, जिनके ऋषभ, युगादिदेव, बाबा आदिम, नाभिपुत्र आदि अनेक नाम हैं इस पृथ्वी तल पर अवतरित हुए। पूर्वजन्मों की विशिष्ट साधनाओं के फलस्वरूप इस युग में एक शक्तिशाली योगी पुरुष के रूप में जीवन चर्या व्यतीत करने लगे। आगम साक्ष्यों के आधार पर ऋषभदेव के दो पुत्रियाँ थी ब्राह्मी और सुन्दरी। उन्होंने सर्वप्रथम अपनी पुत्री ब्राह्मी को लिपि सिखाई अर्थात भाषा ज्ञान सिखाया। वह लिपि (भाषा ज्ञान) ब्राह्मी लिपि के नाम से प्रसिद्ध हुई, तब से भाषा जनित समस्याएँ धीरे-धीरे समाप्त होने लगी। ___भावाभिव्यक्ति के लिए भाषा का अपेक्षित सहयोग प्राप्त होने से पारस्परिक संवादों का क्षेत्र भी बढ़ गया। काल परिवर्तन के साथ-साथ अतिसंवाद कभी-कभार विवाद का रूप धारण करने लगा, समस्याएँ बढ़ने लगी, इच्छा पूरक कल्पवृक्ष का प्रभाव निस्तेज होते देख अनेक प्रकार की चिन्ताएँ उभरने लगी, आपसी सामंजस्य घटने लगा। इन स्थितियों ने सर्वाधिक रूप से शरीर एवं मन को प्रभावित किया, परिणामस्वरूप शारीरिक एवं मानसिक रोगों का प्रभुत्व बढ़ा और आध्यात्मिक शक्तियों का ह्रास होने लगा। उस स्थिति में हमारी जीवनीय शक्ति तथा चेतना शक्ति किस तरह सुरक्षित रह सकती है? अध्यात्म वेत्ताओं ने इस ओर प्रकृष्टता से ध्यान दिया। उन्होंने इसके उपाय स्वरूप अनेक यौगिक पद्धतियों का उत्सर्जन किया, जिनमें एक पद्धति मुद्रा योग से सम्बन्धित थी। कालक्रम से मुद्राओं की विभिन्न प्रणालियाँ विकसित हुई। उधर ऋषभदेव ने सुन्दरी को नृत्य आदि चौसठ कलाएँ सिखाई। नृत्य के द्वारा मुद्राओं की अभिव्यक्ति इस तरीके से की जाती है कि एक व्यक्ति का भाव दूसरे इच्छित व्यक्ति को समग्र रूप से हृदयंगम हो जाता है। मुद्रा के माध्यम से जो यथार्थ एक क्षण में अभिव्यक्त किया जा सकता है उसे शब्दों के माध्यम से व्यंजित किया जाये तो दीर्घ अवधि पूरी हो सकती है तथा वक्तव्य भी लम्बा बन सकता है। शरीरगत सूक्ष्म मुद्राएँ क्षण भर में समग्र भावों को अवतरित कर देती है। इस तरह पूर्व युग में नृत्यकला, चित्रकला आदि के माध्यम से भी मुद्राओं की अभिव्यक्ति की जाती थी, शरीर के हाव-भाव को प्रदर्शित किया जाता था। नृत्य भी विचार संप्रेषण का सुदृढ़ माध्यम था। अत: हम कह सकते हैं कि आदिम युग में मुद्राओं का एक रूप नृत्य था।
SR No.006252
Book TitleMudra Prayog Ek Anusandhan Sanskriti Ke Aalok Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages164
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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