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प्रतिष्ठा के मुख्य अधिकारियों का शास्त्रीय स्वरूप ... 23
इसी क्रम में आचार्य गुणरत्नसूरि ने औषधि घोटने वाली महिलाओं के लिए अत्यावश्यक योग्यताओं का उल्लेख करते हुए उनकी महिमा को अधिक दर्शाया है। तदनुसार
अथ जीवित श्वस्तू - श्वसुरक- मातृ-पितृ-पतिकाश्चतस्रः कुलीनाः प्रधानवेषाभरणाः सुशीलाः पवित्राश्च समाकार्याः सर्वाणि स्नात्रौषधानि वर्तनीयानि तासां च प्रत्येकं कर्पट- नालिकेर - सुख भक्षिकार्पणाऽऽद्युपचारः कार्यः कुंकुम - कुसुम - ताम्बूलपूर्वकं, ताभिश्च यथाशक्तिदेवाय परिधापनिकादि भक्तिः कार्या ।
अर्थात जिसके सास- श्वसुर, माता-पिता और पति जीवित हों, उत्तम वेशभूषा और आभूषणों से अलंकृत हो तथा सुशील, पवित्र आचार वाली और सुकुलीन हो ऐसी चार सन्नारियों को निमन्त्रित कर उनके शुभ हाथों द्वारा स्नात्र और पूजा की सर्व सामग्रियाँ ( औषधियाँ) घुटवायें। फिर चारों सौभाग्यवती महिलाओं का कुंकुम से तिलक कर वस्त्र, श्रीफल, मीठा खाजा, पुष्प और तांबूल अर्पित करते हुए सत्कार करें। उस समय सौभाग्यवती सुश्राविकाएँ भी यथाशक्ति जिनबिम्ब को कुछ मूल्यवान द्रव्य (सोना, चाँदी, रुपया आदि) समर्पित कर उनकी भक्ति करें | 24
आचार्य गुणरत्नसूरि के इस प्रतिष्ठापाठ में श्रीसंघ द्वारा औषधि घोटने वाली स्त्रियों का सम्मान और उनके द्वारा नवीन बिम्बों की विशिष्ट भक्ति इन दो बिन्दुओं की चर्चा अन्य प्रतिष्ठाकल्पों की तुलना में स्वतन्त्र रूप से की गई है। इससे सिद्ध होता है कि प्रतिष्ठा कृत्यों में औषधि पीसने वाली नारियों की अहम भूमिका होती है इसलिए उक्त लक्षणों से युक्त प्रत्येक नारी को इस अवसर का लाभ निश्चित रूप से उठाना चाहिए, क्योंकि यह प्रभु भक्ति और पुण्य उपार्जन का अद्भुत माध्यम है।
श्री विशालराज शिष्य संकलित प्रतिष्ठाकल्प में सन्नारियों का लक्षण जिनप्रभसूरि एवं वर्धमानसूरि के प्रतिष्ठा कल्पों में से अवतरित किया गया है। अनिश्चितकर्ता नामक सातवें प्रतिष्ठाकल्प में औषधि घोटने वाली सुश्राविकाओं के लक्षण श्रीचन्द्रसूरि संकलित प्रतिष्ठा विधि के अनुसार बताए
गए हैं।
सकलचन्द्रगणिकृत आठवें प्रतिष्ठाकल्प में औषधि चूर्ण निर्मात्री स्त्रियों की योग्यताओं के सम्बन्ध में कोई उल्लेख नहीं है।