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22... प्रतिष्ठा विधि का मौलिक विवेचन
तदनन्तर सर्वप्रथम आचार्य चन्द्रसूरि संकलित प्रतिष्ठाकल्प में निम्नोक्त लक्षण वाली सन्नारियों के शुभ हाथ से औषधि घुटवानी चाहिए, ऐसा कहा गया है
तत्रैव मङ्गलाचार पूर्वकमविधवाभिश्चतुः प्रभृतिभिः प्रधानोज्ज्वलनेपथ्याभिर्विशुद्धशीलाभिः सकंकणहस्ताभिरिभिः पञ्चरत्नकषायमाङ्गल्यमृत्तिकाऽष्टवर्ग सर्वोषध्यादीनां वर्तनं कारणीयं क्रमेण।
स्नात्रकारों को सुसज्जित करते समय ही मंगलाचारपूर्वक जो उत्तम वेशभूषा एवं आभूषणों से अलंकृत हो, विशुद्ध शीलवती हो, हाथ में कंकण पहनी हुई हो ऐसी चार सौभाग्यवती सन्नारियों के हाथ से पंचरत्न-कषाय-मंगल मृत्तिका-अष्टवर्ग-सौषधि आदि को अनुक्रम से घुटवानी चाहिए।21 ___ सुबोधा सामाचारी के उक्त पाठ में औषध चूर्णकी नारियाँ कैसी हों तथा
औषध कब और किस क्रम से घुटवाना चाहिए? इन तीनों विषयों का निरूपण किया गया है। ___ तत्पश्चात आचार्य जिनप्रभसूरि ने अपने प्रतिष्ठाकल्प में औषधि घोटने वाली स्त्रियों के सम्बन्ध में 'जीवित पितृमातृ-श्वसुरादिभिः' - जिसके मातापिता, सास-श्वसुर जीवित हों ऐसी सौभाग्यवती नारी, यह विशेषण अतिरिक्त कहा है शेष पाठ श्रीचन्द्रसूरि के अनुसार ही अवतरित किया है।22
उसके पश्चात आचार्य वर्धमानसूरि ने आचार दिनकर की प्रतिष्ठा पद्धति में औषधि घोटने वाली सन्नारियों के सम्बन्ध में निम्न विशेषणों का प्रयोग किया है
चतुसृणां औषधि पेषणकारिणीनामुभय-कुलविशुद्धानां, सपुत्रभतृकाणां सती नामखण्डितांगीनां दक्षाणां शुचीनां सचेतनानां प्रगुणीकरणम्। . अर्थात जिसके माता-पिता के उभय कुल विशुद्ध हों, पुत्र सहित हो, अखंड सौभाग्यवती हो, पतिव्रता हो, अखण्डित अंग वाली हो, चतुर, पवित्र
और जागृत मन वाली हो ऐसी चार सन्नारियों को औषधि घोटने के लिए प्राधान्यता देकर उत्साहित करना चाहिए। ____ आचार दिनकर के इस पाठ में औषध चूर्णकर्ती नारियों की विशेषताएँ एवं उन्हें उत्साहित करने की विधि बताई गई है।23