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परिशिष्ट ...673
श्रृंग
शुद्ध संघाट : गुम्बज का समतल चंदोवा, छत।
: छोटे-छोटे शिखर के आकार वाले अंडक। श्रीवत्स : एक ही सादा श्रृंग। षड्दारु : दो दो स्तम्भ और उसके ऊपर एक एक पाट। सभा मंडप : रंग मण्डप। सभा मार्ग : एक प्रकार की अलंकृत छत, जिसकी रचना अनेकों
मंजूषाकार सूच्ययों से होती है। तीन प्रकार की आकृति वाली
छत। समतल वितान: अवनतोन्नत तलवाली ऐसी छत जो साधारण: पंक्ति बद्ध
सूचियों से अलंकृत होती है। समवशरण : तीर्थंकर प्रभु की बारह खण्डों की धर्मसभा, तीन प्राकार वाली
वेदी। सकलीकरण : जिनबिम्ब प्रतिष्ठा की विधि विशेष। सत्रागार : यज्ञ शाला सभ्रमा : प्रासाद के 1/2 मान का कोली मंडप। सर्वतोभद्र : चतुर्मुख, एक प्रकार का चारों ओर सम्मुख मंदिर, चारों ओर
मूर्तियों से संयोजित एक प्रकार की मंदिर अनुकृति। सलिलांतर : खड़ा अंतराल, वारिमार्ग, बरसाती जल निकालने की बारीक
नालियाँ, जहाँ फालनाओं के जोड़ मिलते हैं। सहस्रकूट : पिरामिड के आकार की एक मन्दिर अनुकृति जिस पर एक
सहस्र तीर्थंकर मूर्तियाँ उत्कीर्ण होती है। संवरणा : अनेक छोटे-छोटे कलशों वाला गुम्बज छत जिसके तिर्यक
रेखाओं में आयोजित भागों पर घंटिकाओं के आकार के लघु शिखर होते हैं, गूमट के ऊपर का भाग।
: तल विभाग। संधि : सांध, जोड़। सांधार : परिक्रमा युक्त नागर जाति के प्रासाद। सारदारु : श्रेष्ठ काष्ठ। सिद्धासन : ध्यान आसन में आसीन तीर्थंकर की एक मुद्रा। सिंह स्थान : शुकनास।
संघाट