________________
उपसंहार ...651 आत्म गुणों का आरोपण तो मात्र उपचार रूप है यथार्थतः तो स्वयं में वीतरागत्व आदि भावों की स्थापना की जाती है। इसी के साथ प्रतिष्ठाकर्ता आचार्य आदि की साधना शक्ति का आरोपण भी जिन प्रतिमा में होता है और इन्हीं गुणों एवं शक्ति संचार के कारण प्रतिमा पूजनीय बन जाती है।
प्रतिष्ठा जब इतना प्रभावशाली अनुष्ठान है तो फिर प्रतिष्ठाकर्ता आचार्य एवं प्रतिष्ठा कारक गृहस्थ आदि में भी विशेष योग्यता होनी चाहिए। वर्तमान में विधिकारकों द्वारा प्रतिष्ठा करवाना कितना उचित है?
शास्त्रकारों ने प्रतिष्ठा कर्ता आचार्य, जिनमंदिर निर्माता गृहस्थ, शिल्पी आदि के स्वरूप का विस्तार से वर्णन किया है। प्रतिष्ठाचार्य का आचरण एवं साधना पक्ष जितना सुंदर, सम्यक और सरस होता है प्रतिष्ठा उतनी ही प्रभावशाली और कल्याणकारी बनती है। जिन मंदिर निर्माता के द्वारा प्रयुक्त द्रव्य न्यायोपार्जित एवं शुद्ध हों तथा भावों में यदि निर्मलता हो तो वह जिनमंदिर दर्शनार्थियों के शुभ भावों को उत्पन्न करने में भी निमित्तभूत बनता है। शिल्पी के द्वारा जितनी प्रसन्नता एवं मनोयोगपूर्वक प्रतिमा का निर्माण किया जाता है, प्रतिमा में उतनी सौम्यता एवं सुन्दरता के दर्शन होते हैं और मन प्रसन्नचित्त बनता है। अत: इन सबका तद्योग्य होना अत्यन्त आवश्यक है।
वर्तमान के प्रतिष्ठा आयोजनों पर दृष्टिपात करें तो ये सभी पक्ष गौण होते नजर आ रहे हैं। आज प्रतिष्ठा अनुष्ठानों की सफलता का निर्णय प्रतिष्ठा में एकत्रित द्रव्य, जन समुदाय एवं प्रतिष्ठा की भोजन व्यवस्था आदि के आधार पर किया जाता है। जितनी महंगी प्रतिष्ठा हो वह उतनी अच्छी, फिर उसमें चाहे जिनवाणी गौण ही क्यों न हो जाए। रात्रि में भट्ठी जलना, भक्ष्य-अभक्ष्य का अविवेक, बरफ, द्विदल, बासी का तो खुले आम प्रयोग होता है। आजकल आयोजित होने वाले रात्रि भक्ति के कार्यक्रम आध्यात्मिक रस की अपेक्षा फिल्मी माहौल से अधिक युक्त होते हैं।
वर्तमान में साधु-साध्वियों की घटती संख्या एवं उनकी आचार मर्यादाओं के कारण प्रतिष्ठा अनुष्ठान विधिकारकों द्वारा सम्पन्न करवाए जाते हैं। जब आचार्य आदि मुनि भगवंत जिनका आचरण पक्ष गृहस्थ की अपेक्षा बहुत अधिक सुदृढ़ होता है उनके लिए भी कई नियमों का प्रावधान है तब फिर गृहस्थ विधिकारक का आचरण एवं साधना पक्ष कैसे गौण किया जा सकता है। विधिकारक की प्रसिद्धि के साथ उसकी परमात्म भक्ति एवं जिनाज्ञा पालन पक्ष पर भी ध्यान दिया जाना चाहिए।