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572... प्रतिष्ठा विधि का मौलिक विवेचन
1. निर्वाणकलिका में बलि सामग्री के साथ कंदमूल ग्रहण का दो-तीन बार उल्लेख है।
2. निर्वाणकलिका के अन्तर्गत फल सामग्री में बोर एवं वृन्ताक को प्रशस्त फल के रूप में माना गया है। ____ 3. निर्वाणकलिका में ऊर्णासूत्र एवं लौह मुद्रिका को उपकरण के रूप में स्वीकार किया गया है परन्तु इसके परवर्ती किसी भी प्रतिष्ठाकल्प की सामग्री में उपर्युक्त पदार्थों की परिगणना नहीं की गई है।
4. निर्वाणकलिका के अनुसार जिन प्रतिमा का प्रथम अभिषेक शिल्पी के द्वारा किया जाना चाहिए। उसके पश्चात अभिषेक चार स्नात्रकारों द्वारा करने का वर्णन है। इस विधि नियम को आचार्य जिनप्रभसूरि ने भी स्वीकार किया है किन्तु इसके अतिरिक्त अन्य किसी भी प्रतिष्ठाकल्पकार ने उक्त विधि का समर्थन किया हो, ऐसा ज्ञात नहीं होता है।
5. निर्वाणकलिका में नन्द्यावर्त पूजन हेतु सात वलय का उल्लेख किया गया है किन्तु अन्य प्रतिष्ठाकारों ने नन्द्यावर्त पूजन के लिए आठ वलय का विधान किया है।
निर्वाणकलिका में नन्द्यावर्त्त पूजन के प्रथम वलय के मध्यभाग में अरिहंत, पूर्व दिशा में सिद्ध, दक्षिण दिशा में आचार्य, पश्चिम दिशा में उपाध्याय, उत्तर दिशा में सर्वसाधु तथा आग्नेय आदि चार कोणों में अनुक्रम से ज्ञान-दर्शनचारित्र और शुचि विद्या का आलेखन एवं पूजन करने का सूचन किया गया है, जबकि अन्य प्रतिष्ठाकारों ने मध्य वलय में 'श्री नन्द्यावर्त' स्वस्तिक का आलेखन कर उसके चारों ओर आठ दिशा-विदिशाओं में अनुक्रम से अरिहंतसिद्ध-आचार्य-उपाध्याय-साधु-ज्ञान-दर्शन और चारित्र इन आठ पदों के आलेखन और पूजन का निर्देश किया है, शुचिविद्या के आलेखन और पूजन को छोड़ दिया है।
6. पूर्वकालीन स्थिर प्रतिष्ठा में मूलनायक प्रतिमा के अधोभाग में पंच धातु का स्थापन किया जाता था, जिसमें लौहधातु का भी समावेश होता था। किन्तु परवर्ती प्रतिष्ठाकारों ने पंचधातु की जगह पंचरत्न को स्थान दिया जिनमें सोना, चाँदी, तांबा, प्रवाल और मोती सम्मिलित है, लौह नहीं होता है। ____7. विक्रम की चौदहवीं शताब्दी पर्यन्त जिनबिम्ब की चल प्रतिष्ठा में नन्द्यावर्त्त का पूजन कर उसके ऊपर प्रतिष्ठाप्य नूतन जिन बिम्ब की स्थापना