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562... प्रतिष्ठा विधि का मौलिक विवेचन
प्रतिष्ठाचार्य प्रतिष्ठा के मुख्य सूत्रधार होने से पूजा आदि अनुष्ठानों में शुद्ध उच्चारणपूर्वक मन्त्र एवं काव्य बोलना, सूरिमन्त्र से अभिमन्त्रित वासचूर्ण का प्रक्षेपण करना, जिन बिम्बों का नेत्रांजन करना, सम्यगदृष्टि देवी-देवताओं की प्रतिष्ठा करना-करवाना आदि असावद्य प्रवृत्तियों का उन्हें एकमात्र अधिकार होता है। यह आचार शास्त्र सम्मत होने के कारण सर्वत्र मान्य है। स्नात्रकार शुद्ध सम्यक्त्वधारी, चतुर्थव्रत अंगीकार किए हुए, शक्ति अनुसार व्रत-प्रत्याख्यान करने वाले रात्रिभोजन और अभक्ष्य-अनन्तकाय के त्यागी हों तो भी प्रयत्न से प्रतिष्ठाचार्य के अधिकृत अनुष्ठानों को स्वयं करने का आग्रह नहीं रखे।
कदाच प्रतिष्ठादि के पुण्य प्रसंग पर प्रतिष्ठाचार्य का सुयोग न हो उस आपवादिक स्थिति में यदि गीतार्थ आचार्य प्रतिष्ठा करवाने की अनुमति पूर्वक सूरिमन्त्र से अभिमन्त्रित वासचूर्ण प्रदान करें तो उसे शुभ मुहूर्त में जिनबिंब के ऊपर प्रक्षिप्त करके प्रतिष्ठा करवा सकते हैं। परन्तु यह आचरणा आपवादिक होने से इसे औत्सर्गिक नहीं बनानी चाहिए।
सातवें प्रतिष्ठाकल्प का आधार जिनप्रभसूरि की प्रतिष्ठा पद्धति है। इस प्रतिष्ठा कल्पकार ने कितने ही अनुष्ठानों के सम्बन्ध में स्पष्टता से प्रतिपादन किया है। उनका उल्लेख जिनप्रभसूरिकृत प्रतिष्ठा पद्धति में नहीं है। कितनी ही सावध प्रवृत्तियाँ प्रतिष्ठाचार्य द्वारा नहीं, बल्कि स्नात्रकार श्रावकों के हाथ से करवाने का विधान किया गया है। परन्तु पाँचवें और छठे क्रम वाले प्रतिष्ठाकल्पों के विधानों से सातवें प्रतिष्ठाकल्पगत विधान भिन्न हैं।
आठवाँ प्रतिष्ठाकल्प उपाध्याय सकलचन्द्र की कृति मानी जाती है। इसके आधारभूत ग्रन्थ के विषय में रचनाकार ने ग्रन्थ की समाप्ति में निम्नानुसार सूचित किया है" इति श्री भद्रबाहु स्वामिना विद्याप्रवाद पूर्वात् प्रतिष्ठा कल्पोद्धृतः । तन्मध्याज्जगच्चन्द्रसूरीश्वरेण, यत्प्रतिष्ठा कल्पोद्धृतः ।।
तत एव प्रतिष्ठा कल्पः सुविहितवाचक श्री सकलचन्द्रगणिना भट्टारक श्री हरिभद्रसूरिकृत कल्प-हेमाचार्य कृतप्रतिष्ठा-श्यामचार्यकृत प्रतिष्ठाकल्प-श्रीगुणरत्नाकरसूरिकृत प्रतिष्ठाकल्प एभिः प्रतिष्ठाकल्पैः सह संयोजितः संशोधितश्च भ। श्री विजयदान सूरिश्वराये।
उक्त समाप्ति लेख का तात्पर्य यह है कि आर्य भद्रबाहु स्वामी ने विद्याप्रवाद पूर्व में से प्रतिष्ठाकल्प को उद्धृत किया, उसमें से