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प्रतिष्ठा विधानों के अभिप्राय एवं रहस्य ...539
मन्त्र के द्वारा तथा पंचपरमेष्ठी नमस्कार मन्त्र के द्वारा सकलीकरण करने की परम्परा जैन ग्रन्थों में देखी जाती है।
इनमें बीजाक्षरों से निर्मित मन्त्र से सकलीकरण करने की परम्परा को जैनों ने अन्य तान्त्रिक धाराओं से गृहीत किया है, जबकि पंचपरमेष्ठी एवं तीर्थंकरों के नामों से न्यास एवं सकलीकरण की परम्परा जैन आचार्यों ने स्वयं विकसित की है।
न्यास की प्रस्तुत प्रक्रिया में विचारणीय प्रश्न यह है कि क्या पंचपरमेष्ठी या तीर्थंकर इस प्रकार न्यास कर लेने पर रक्षा करते हैं? जैन परम्परा में तीर्थंकर वीतराग होते हैं वे धर्म तीर्थ के संस्थापक अवश्य कहे जाते हैं किन्तु हिन्दू परम्परा मान्य ईश्वर के अवतार की तरह वह न तो सज्जनों का रक्षक और न दुष्टों का संहारक है फिर जैन धर्म में उनके नाम से अंग न्यास या आत्मरक्षा की अभ्यर्थना का क्या अर्थ है?
यह सत्य है कि जैनधर्म मूलत: आध्यात्मिक एवं निवृत्ति प्रधान है तथा वीतराग परमात्मा किसी का हित-अहित भी नहीं करते। परन्तु उनके नाम स्मरण के पीछे निहित साधक की श्रद्धा एवं सकारात्मक भावना से व्यक्ति का रक्षण होता है।
इसी प्रकार प्रत्येक मंत्र देवाधिष्ठित होने से उन मन्त्रों का स्मरण करने पर अधिष्ठायक देव एवं तत्सम्बन्धी तीर्थंकर परमात्मा के अधिष्ठायक देवी-देवता शरीर रक्षा में सहायक बनते हैं।
डॉ. सागरमलजी की मान्यता है कि न्यास द्वारा व्यक्ति में यह आत्मविश्वास जागृत होता है कि कोई मेरा रक्षक है और यही दृढ़ विश्वास या श्रद्धा उसका रक्षा कवच बनता है। मनोवैज्ञानिक दृष्टि से न्यास आत्म विश्वास जागृत करने एवं मनोबल को द्रढ़ बनाने की प्रक्रिया है। व्यक्ति की सफलता का कारण मन्त्र या देवता नहीं, उसका दृढ़ मनोबल ही होता है। कहा भी है- मन के हारे हार है और मन के जीते जीता20 छोटिका प्रदर्शन क्यों आवश्यक है?
प्रतिष्ठा सम्बन्धी पूजा-विधानों एवं मन्त्र साधना में विघ्न निवारण हेतु दिग्बन्धन किया जाता है। ठीक उसके पश्चात सभी दिशाओं में छोटिका प्रदर्शन अर्थात चुटकी बजाई जाती है। परम्परागत विश्वास यह है कि चुटकी बजाने से