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प्रतिष्ठा विधानों के अभिप्राय एवं रहस्य ...531 प्रतिष्ठा विधानों में बलि प्रक्षेपण की क्रिया से क्या अभिप्राय है? ___बलि अर्थात पकाया हुआ अनाज नैवेद्य। आजकल इसे बाकुला कहते हैं। सामान्यतया गेहूँ, मूंग, जौ, चना आदि सात धान्यों का सम्मिश्रित पकाया हुआ द्रव्य बलि बाकुला कहा जाता है। ज्ञाताधर्मकथा, कल्पसूत्र आदि आगमों में जिनपूजा के अर्थ में ‘ण्हायाकयबलिकम्मा' इस रूप में बलि शब्द प्रयुक्त है।
बलि का अर्थ तर्पण करना, उपहार स्वरूप देवों को दान करना आदि भी है। बलि शब्द हिंसासूचक भी माना गया है किन्तु प्रतिष्ठा विधि के अन्तर्गत देवताओं को तुष्ट करने के लिए धान्य के रूप में बलि बाकुला दिये जाते हैं।
परम्परागत मान्यता के अनुसार बलि बाकला अपर्ण करने के निम्न लाभ हैं- 1. पकाया हुआ अन्न खिलाने से देवता प्रसन्न होते हैं। 2. भूत-प्रेत आदि भी पकाये हुए खीर, खीचड़े आदि की याचना करते हैं। 3. दश दिक्पाल देव भी पके हुए धान्य के बाकुले देने से प्रसन्न होते हैं। 4. निशीथ सूत्र के अनुसार उपद्रव का शान्ति करने के लिए बलि-नैवेद्य दिया जाता है। नूतन बिम्बों पर प्रौंखण क्रिया क्यों?
प्रौखण क्रिया प्रतिष्ठा का एक आवश्यक अंग है। प्रौंखण एक चुमाने (स्पर्श करने) एवं विवाह की रीति है। प्राकृत कोश के अनुसार वर के लिए सासू के द्वारा किया गया न्यौछावर प्रौखणक कहलाता है। लौकिक जगत में इसे मंगलकारी माना गया है। यह विवाह का एक नेकाचार भी माना जाता है अत: लोक प्रणाली के अनुसार इसे विवाह के अवसर पर किया जाता है। __ इस प्रक्रिया को करने के लिए कुलडि में लड्डू, पपड़ी, चाँदी, सुपारी, अक्षत आदि मंगलसूचक सामग्री रखते हैं, फिर उसके ऊपर मोली बांधी जाती है और जब वर राजा तोरण द्वार पर पहुँचता है तब चार-छह सौभाग्यवती नारियों द्वारा उस कुलड़ि को साड़ी के पल्ले से ढककर चुमाने (वर के कंधे को छुने) रूप नेकाचार किया जाता है।
दूसरी रीति के अनुसार इस क्रिया में पाँच साधनों का उपयोग करते हैं1. घोसरूं- बैलगाड़ी में सबसे आगे लगने वाला लकड़ी का पाटा 2. मूसलधान से चावल अलग करने का उपकरण 3. मथनी- दही से मक्खन निकालने का साधन 4. तकली (चरखा)- रूई से धागा बनाने का साधन 5. सरीया- लौह खंड। उपाध्याय मणिप्रभसागरजी के अनुसार वर्तमान में ये पाँचों उपकरण चाँदी