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530... प्रतिष्ठा विधि का मौलिक विवेचन
प्रतिमा की प्रभावशीलता और अज्ञान तिमिर हरण शक्ति को निरन्तर प्रवर्द्धमान रखना तथा घृत की भाँति प्रतिमा के तेज को देदीप्यमान रखना है। इन्हीं शुभ भावों को मूर्तरूप देने हेतु यह विधि करते हैं।
अंजन विधि में किन-किन वस्तुओं का प्रयोग होता है और क्यों?
नूतन बिम्बों के चक्षु युगल में विशिष्ट चूर्णरस द्वारा मन्त्रों का न्यास करना अंजनशलाका कहलाता है। यह विधि केवलज्ञान कल्याणक के रूप में की जाती है। अंजन क्रिया के लिए सौवीर (अंजन), घृत, मधु, शक्कर, गजमद, कर्पूर, कस्तूरी - इन सामग्रियों का चूर्ण रस बनाकर चाँदी की कटोरी में लेते हैं फिर सुवर्ण की शलाका से नेत्रों का उद्घाटन करते हैं। इन औषधियों के चूर्ण रस में ओजस्विता एवं तेजस्विता का विशिष्ट गुण समाहित है इसलिए इनका उपयोग करते हैं।
नूतन जिनबिम्बों के दाहिने कर्ण में मंत्र क्यों सुनाते हैं?
प्रतिष्ठा विधि के अनुसार अंजनविधि होने के पश्चात नूतन बिम्बों को सूरिमन्त्र सुनाकर उनमें प्रभावकता उत्पन्न की जाती है ।
इसी क्रम में मंगल एवं स्थिरता हेतु नूतन बिम्बों को दही पात्र दिखाते हैं, दर्पण का दर्शन करवाते हैं और शंख दर्शन भी करवाते हैं । प्रतिष्ठित बिम्बों के सौभाग्य एवं स्थैर्य बनाए रखने के लिए सौभाग्य, सुरभि, प्रवचन, अंजलि एवं गरूड़- इन पाँच मुद्राओं को भी दिखाते हैं।
नूतन बिम्बों पर मातृशाटिका ( ननिहाल की साड़ी) का आरोपण क्यों करते हैं?
यह क्रिया अधिवासना विधि के अन्तर्गत सौभाग्यवर्धन एवं मंगल वृद्धि हेतु की जाती है। इन दिनों कल्याणक उत्सव के क्रम में भगवान के विवाह आदि दृश्य भी प्रस्तुत किये जाते हैं। उस सन्दर्भ में भी मातृशाटिका का अभिप्राय ग्रहण कर सकते हैं। श्रीचन्द्रसूरि ने सुबोधासामाचारी में दो स्थानों पर मातृशाटिका का विधान किया है वहीं आचार्य पादलिप्तसूरि ने अधिवासना के समय मातृशाटिका का विधान किया है तथा प्रतिष्ठा के अवसर पर श्वेत वस्त्र का उल्लेख किया है।