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________________ अध्याय- 14 प्रतिष्ठा विधानों के अभिप्राय एवं रहस्य प्रतिष्ठा अनुष्ठान से सम्बन्धित अनेक विषयों एवं विधि-विधानों की चर्चा हमने पूर्व अध्यायों में की जितने आवश्यक यह विधि-विधान हैं उतना ही जरूरी है इन विधि-विधानों में छुपे रहस्य, उनकी गहराई एवं उनके हेतुओं को जानना। क्योंकि तभी उन क्रियाओं एवं विधियों से हमारा संपर्क अंतर मन से जुड़ सकता है। ऐसे भी कई तथ्य है जो मन में विविध प्रकार की शंकाएँ उत्पन्न करते हैं तथा कई बार उनके मूल कारणों को न जानने के कारण विभ्रान्त मान्यताएँ जन मानस में स्थापित हो जाती है। जैसे कि जैन धर्म निवृत्ति प्रधान है और यहाँ पर वीतराग परमात्मा की आराधना का ही निर्देश है परन्तु प्रतिष्ठा विधानों में कई स्थानों पर देवी-देवताओं के आह्वान, पूजन या उन्हें सामग्री अर्पण करने का वर्णन क्यों आता है ? ऐसे ही बलिप्रक्षेपण, अष्टाह्निका महोत्सव आदि कई विधान हैं जिनके विषय में लोग अनेक प्रकार के तर्क प्रस्तुत करते है। उन्हीं रहस्यों से आम जनता को अवगत करवाना, उसके शास्त्रीय निर्देश एवं प्रमाणों को प्रस्तुत करना आदि वर्तमान संदर्भों में आवश्यक प्रतीत होता है। जब तक किसी भी क्रिया के मर्म एवं उसके प्रयोजन का ज्ञान न हो तब तक उस क्रिया के प्रति अहोभाव का वर्धन नहीं होता एवं भाव रहित क्रिया कभी भी कर्म निर्जरा में हेतुभूत नहीं बनती। इसीलिए प्रतिष्ठा संबंधी विधानों के रहस्य प्रामाणिक ग्रन्थों एवं गीतार्थ मुनि भगवंतों के अनुसार बताने का प्रयास किया जा रहा है। देवी-देवताओं को फल आदि क्यों चढ़ाएँ जाते हैं? प्रतिष्ठा के दिनों में सिद्धचक्र, बीशस्थानक, शान्तिस्नात्र आदि कई महापूजन पढ़ाए जाते हैं। उस समय आमन्त्रित देवी-देवताओं एवं क्षेत्रपाल आदि को विशिष्ट प्रकार के फलादि चढ़ाते है । यह सामान्य लोक व्यवहार है कि आगन्तुक मेहमान गुजरात, मारवाड़,
SR No.006251
Book TitlePratishtha Vidhi Ka Maulik Vivechan Adhunik Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages752
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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