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विषयानुक्रमणिका अध्याय-1 : प्रतिष्ठा का अर्थ विन्यास एवं प्रकार 1-10
1. प्रतिष्ठा का शाब्दिक अर्थ 2. प्रतिष्ठा की सैद्धान्तिक परिभाषाएँ 3. प्रतिष्ठा के अन्य अर्थ 4. जैन वाङ्मय में प्रतिष्ठा के प्रकार। अध्याय-2 : प्रतिष्ठा के मुख्य अधिकारियों का शास्त्रीय स्वरूप
____11-26 1. प्रतिष्ठा करवाने का अधिकारी कौन? 2. जिनालय निर्माण का मुख्य अधिकारी कौन? 3. कैसा गृहस्थ प्रतिष्ठा करवा सकता है? 4. प्रतिष्ठा के मुख्य सूत्रधार इन्द्र का स्वरूप 5. शिल्पी का स्वरूप 6. औषधियाँ घोंटने एवं पौंखण करने वाली नारियों का स्वरूप। अध्याय-3 : प्रतिष्ठा सम्बन्धी आवश्यक पक्षों का मूल्यपरक विश्लेषण
27-52 1. जिनबिम्ब की प्रतिष्ठा कब की जानी चाहिए? 2. सुप्रतिष्ठा के लिए आवश्यक तत्त्व 3. अंजनशलाका-प्रतिष्ठा उत्सव के प्रारम्भिक कृत्य 4. प्रतिष्ठाचार्य की वेशभूषा 5. प्रतिष्ठा संस्कार किन-किनका किया जाए? 6. किस प्रतिष्ठा में किनका अन्तर्भाव? 7. वास्तु पूजा कब की जाए? 8. शान्ति पूजा कब की जानी चाहिए? 9. प्रतिष्ठा विधान में उपयोगी मुद्राएँ 10. वर्तमान प्रचलित प्रतिष्ठा महोत्सव का क्रम 11. प्रतिष्ठा सम्बन्धी बोलियों का स्पष्टीकरण। अध्याय-4 : जिनालय आदि का मनोवैज्ञानिक एवं प्रासंगिक स्वरूप
53-69 1. प्रतिष्ठा एक मंगल अनुष्ठान कैसे? 2. मूर्ति आदि की प्रतिष्ठा आवश्यक क्यों? 3. जिनालय की आवश्यकता क्यों? 4. जिनालय का माहात्म्य 5. जिनालय एवं जिनबिम्ब निर्माण के लाभ 6. एक प्रतिमा के निर्माण से अनेक प्रतिमा बनवाने का लाभ कैसे? 7. सुप्रतिष्ठा के परिणाम।