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508... प्रतिष्ठा विधि का मौलिक विवेचन क्रयाण का अर्थ है खरीदने वाला और क्रयाणक का अर्थ है खरीदा हुआ। हिन्दी के 'किराना' शब्द का संस्कृत में क्रयणम बनता है। इससे द्योतित होता है कि धान्यादि से सम्बन्धित वस्तुएँ क्रयाणक कही जा सकती हैं।
__ प्रतिष्ठा कल्पों में अन्नादि धान्य, शुष्क मेवा एवं विविध औषधियाँ क्रयाणक रूप मानी गयी हैं। पृथ्वी पर रोगों का हरण करने वाली जितनी भी
औषधियाँ हैं वे सब क्रयाणकों में समाविष्ट हैं। जिसका भी क्रय-विक्रय हो सकता है वह सब क्रयाणक हैं- इस अपेक्षा से कुछ आचार्य चारों प्रकार के अन्न, वस्त्र, मणिरत्न, गाय आदि पशु और स्वर्ण आदि धातुओं को क्रयाणक मानते हैं किन्तु कुछ आचार्यों ने उपर्युक्त सभी वस्तुओं को क्रयाणक में सम्मिलित नहीं किया है।
प्रतिष्ठा सकल सृष्टि जगत का उत्तम और मंगलकारी विधान है। अत: प्रतिष्ठा के समय इस विधि के द्वारा समस्त प्राणी जगत के लिए मंगल कामना
और कल्याण की भावना की जाती है। इस प्रकार यह लोक मंगल और विश्व कल्याण की दृष्टि से किया जाने वाला उत्तम अनुष्ठान है।
क्रयाणक पुटिका का न्यास करते समय यह चिन्तन करना चाहिए कि समस्त क्रयाणक सुलभ रहें, कभी भी दुर्भिक्ष को प्राप्त न हों। क्योंकि इन खाद्य पदार्थों के बिना चराचर जीवों का निर्वाह होना असम्भव है। क्रयाणकों की अभिवृद्धि में ही समस्त जीवों की समृद्धि है, अत: यह विधान ऊपरी तौर से सामान्य दिखने पर भी महत्त्वपूर्ण और भावपूर्ण है।
लोक कल्याण के अतिरिक्त क्रयाणकों का अपना विशिष्ट महत्त्व भी है। क्रयाणकों में धान्य, मेवा, औषधि आदि का अन्तर्भाव होता है, जिनमें विभिन्न प्रकार की शक्तियाँ निहित हैं। प्रतिष्ठा के समय 360 क्रयाणकों को एकत्रित करने पर उसका ज्ञान चेतना एवं वातावरण पर अद्भुत प्रभाव पड़ता है। 360 पुटिकाओं को रखते हुए समस्त जनपद में यह सूचित किया जाता है कि इस पुण्य प्रसंग पर समस्त वसुधा परमात्मा के चरणों में स्वयं को धन्यातिधन्य मान रही हैं अतएव हमें भी प्रभु चरणों में सर्वात्मना अर्पित होना चाहिए।
इस प्रकार अरिहंत परमात्मा की अनिर्वचनीय महिमा को दर्शाने एवं समस्त प्राणी जगत के सुख की कामना को प्रत्यक्ष रूप देने के लिए तीन सौ साठ क्रयाणक बिम्ब के हाथ में रखे जाते हैं।
ज्ञातव्य है कि विक्रम की 13वीं शती के पूर्वकाल तक ये पुटिकाएँ