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प्रतिष्ठा सम्बन्धी मुख्य विधियों का बहुपक्षीय अध्ययन ...507
उपदेशात्मक परमाणुओं को टेप किया जाए।
आचार्य वसुनंदि ने प्रतिमा के प्रत्येक अंग में मन्त्र न्यास, अड़तालीस प्रकार के संस्कारों की स्थापना, नेत्रोन्मीलन, श्रीमुखोद्घाटन, सूरिमंत्र आदि क्रियाओं का अपने प्रतिष्ठा पाठ में उल्लेख किया है।
प्राण प्रतिष्ठा के आयोजन में अंजनशलाका करते समय जिस दर्पण में प्रतिमा का मुख देखा जाता है उसके टुकड़े-टुकड़े हो जाते हैं। ऐसा कई बार देखने-सुनने में आया है।
जिस प्रकार टेलीविजन में दर्शाये जाते भिन्न-भिन्न व्यक्तियों का पारिणामिक भाव दर्शकों पर होता है, उसी प्रकार प्राण प्रतिष्ठा की गई प्रतिमा का प्रभाव साधक पर पड़ता है।
जिस प्रकार गरुड़ मुद्रा के दर्शन मात्र से सर्प विष का अपहरण होता है, उसी प्रकार जिन मुद्रा भी पापों को हरण करने वाली है। जिनमुद्रा के दर्शन मात्र से पाप नष्ट हो जाते हैं | 24
भावात्मक दृष्टि से प्राण प्रतिष्ठा का अनुष्ठान हमारे अन्त:करण में शुभ भावों को जागृत कर शुद्ध की ओर जाने के लिए हमें प्रेरित करता है। इसी के साथ श्रेष्ठ मूल्यों को जीवन में उतारने के प्रति सचेत करता है।
जब प्रतिमा में परमात्मा के दस द्रव्यप्राणों और चार भाव प्राणों की प्रतिष्ठा हो जाती है उसके पश्चात प्रतिमा का दर्शन करने से उनकी निर्विकार छवि भावात्मक रूप से साधक के ध्यान में आ जाती है। इससे शुभ और शुद्ध दोनों
प्रकार के परिणाम उभरते हैं जिससे साधक का मोक्ष मार्ग प्रशस्त होता है।
इस प्रकार प्राण प्रतिष्ठा महापुरुषों के प्रति श्रद्धा उत्पन्न कराने वाला और जीवन में सद्गुणों की प्रतिष्ठा करने वाला अनुष्ठान है। अतः प्राण प्रतिष्ठा के तात्कालिक एवं दूरगामी परिणामों को ओझलकर उनकी भर्त्सना करना, उपहास करना, उसे पाखण्डपूर्ण, निरर्थक और खोखला बताना अनुचित है।
क्रयाणक अर्पण का ऐतिहासिक स्वरूप
प्रतिष्ठा कल्पकारों के निर्देशानुसार प्रतिष्ठा विधि के दौरान 360 क्रयाणक पुटिकाएँ जिनबिम्ब के समक्ष रखनी चाहिए और यह विधान नन्द्यावर्त्त पूजन के पश्चात करना चाहिए, ऐसा भी कहा गया है।
संस्कृत के 'क्रय' शब्द से क्रयाणक निष्पन्न है। क्रय का अर्थ खरीदना है,