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________________ 504... प्रतिष्ठा विधि का मौलिक विवेचन होता है। • आचार्य और उपस्थित दर्शकों को दृढ़ मनोयोग पूर्वक विश्व मैत्री की भावना करनी चाहिए। • इस विधि के दौरान आत्मोत्कर्ष की भावना करते हुए यह चिन्तन करना चाहिए कि हे परमात्मन्! आपने प्रबल साधना के द्वारा स्वयं के आत्मस्वरूप एवं ज्ञान नेत्रों को उद्घाटित कर लिया है। मुझे भी इन्हीं भावों से भावित कर इसी भव में सम्यक् चारित्र के ग्रहण का आशीर्वाद दें। __ हे देवाधिदेव! जिस भव्यता के साथ देवतागण केवलज्ञान कल्याणक मनाते हैं हमें भी वैसी सामर्थ्य प्रदान करें और उस प्रकार के उत्कृष्ट भावों को प्रकट करें। हे त्रिकालदर्शी! जिस प्रकार आपने अष्ट कर्मों का क्षय कर शाश्वत सुख का वरण कर लिया है उसी प्रकार की भावनाएँ मुझ पामर के भीतर भी उदिप्त करें। ___अंजनशलाका विधि के लाभ- • आचार्य के द्वारा नाभि के नाद पूर्वक मंत्रोच्चार करने से समग्र वायु मंडल प्रभावित होता है जिससे सम्यग्दृष्टि देवीदेवताओं का सनिधान प्राप्त होता है। • यह क्रिया मन्त्र प्रधान होने से पुण्य परमाणुओं का प्रसारण होता है तथा जब तक जिनबिम्ब और जिनालय विद्यमान रहते हैं मानव कल्याण की परम्परा अनवरत रूप से चलती रहती है। • यह अनुष्ठान आध्यात्मिक विकास करते हुए आधि-व्याधि-उपाधि का शमन करता है। इससे भौतिक सुखों की प्राप्ति के साथ वैराग्य भावों में उत्कर्ष होता है जिसके कारण आसक्ति एवं परिग्रह भावों का बहिर्गमन होता है। • इस विधान में सम्मिलित होने के फलस्वरूप सुख-दुख, शत्रु-मित्र, अनुकूलता-प्रतिकूलता की प्रत्येक परिस्थिति में समता एवं समाधिमरण की भावना बनी रहती है। • यह महोत्सव अरिहंत परमात्मा के नाम, स्थापना एवं द्रव्य निक्षेप को भाव निक्षेप में अंतरित करता है तथा भाव तीर्थंकर की परम भक्ति का आस्वाद करवाता है। अंजनविधि की मल्यवत्ता विविध दष्टियों से- अंजन विधि से पर्व के समस्त विधानों द्वारा जिनबिम्बों में अंगों एवं उपांगों की स्थापना होती है तथा अंजन के माध्यम से तीर्थंकरत्व एवं केवलज्ञान शक्ति का आरोपण किया जाता
SR No.006251
Book TitlePratishtha Vidhi Ka Maulik Vivechan Adhunik Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages752
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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