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प्रतिष्ठा सम्बन्धी मुख्य विधियों का बहुपक्षीय अध्ययन ...493 उपयोग किया जाने लगा और इसी कारण उक्त तीनों पूजन पाटला पूजन के नाम से प्रसिद्ध है।
पाटला पूजन कब और कहाँ किया जाए?- प्रचलित परम्परा के अनुसार यह पूजन प्रतिष्ठा, महापूजा, जाप अनुष्ठान आदि में किया जाता है। प्रतिष्ठा के अवसर पर यह विधान लग्न आदि की शुद्धि के अनुसार तीसरे या पाँचवें दिन किया जाता है। इन दिनों में नंद्यावर्त पूजन भी करते हैं जो अंजनशलाका विधि से सम्बन्ध रखता है।
यह पाटला पूजन जिनमंदिर अथवा पूजन मंडप में जिनबिम्ब के समक्ष किया जाता है। पूजन के पश्चात दश दिक्पाल का पट्टा परमात्मा के बायीं तरफ एवं नवग्रह का पट्टा परमात्मा के दाहिनी तरफ रखा जाता है। अष्टमंगल पट्ट परमात्मा के समक्ष रखते हैं।
पाटला पूजन के अधिकारी कौन? - वर्तमान में यह पूजन चढ़ावा लेने वाले लाभार्थी परिवार करते हैं। इसकी पूजा विधिकारक, योग्य श्रावक अथवा गुरु महाराज उपस्थित हों तो उनके द्वारा करवायी जाती है। आजकल प्रायः यह क्रिया विधिकारक ही करवाते हैं। __पाटला कैसा हो?- वर्तमान में लकड़ी के पट्टों पर चाँदी के पत्रों में अंकित दशदिक्पाल आदि से युक्त पाटले (पट्टे) प्रयोग में लिए जाते हैं। यदि इस तरह के पट्टे उपलब्ध न हों तो किसी काष्ठ आदि के पाटले पर नवग्रहादि का आलेखन करवाकर भी पूजन किया जा सकता है।
पाटला पूजन में क्या भावना करें?- पाटला पूजन करते समय पूजनकर्ता प्रयोजनभूत देवी-देवताओं को प्रसन्न एवं आमंत्रित करते हुए उनसे यह प्रार्थना करें कि 'हे नवग्रहादि देवों! यह अरिहंत परमात्मा की भक्ति का अपूर्व अनुष्ठान है अत: आप सभी इसमें पधारकर इस प्रसंग को और अधिक मंगलकारी बनाएँ तथा इन मंगल घड़ियों में आशंकित विघ्नों एवं उपद्रवों से हमारी रक्षा करें।' ___ पाटला पूजन सम्बन्धी आम मान्यताएं- जन मान्यता के अनुसार यह पूजन करने से प्रकृति भी हमारे कार्य में सहायक बनती है। जिस प्रकार नगर में सुख-शान्ति पूर्वक रहने के लिए नगर प्रमुखों को खुश रखना जरूरी होता है ताकि वे हर कार्य में सहयोगी बन सकें। वैसे ही दिक्पाल देवों एवं नवग्रहपति देवों को प्रसन्न रखने से किसी भी प्रकार की बाधा उपस्थित हो तो उनका