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प्रतिष्ठा सम्बन्धी मुख्य विधियों का बहुपक्षीय अध्ययन ...475 जिनबिम्ब के समीप किन-किनकी स्थापना की जाए?- अधिवासना के पश्चात् जिनबिम्ब के चारों तरफ चार श्वेत कलशों की स्थापना करनी चाहिए। इन कलशों को जल से आपूरित कर उसमें, अक्षत, सुवर्ण, चाँदी और पंचरत्न आदि डाले जाते हैं। फिर कलश के ऊपर चंदन का विलेपन करके कंठ में पुष्पमाला पहनाकर उन्हें चौगुने कच्चे धागे से बांधना चाहिए। __तदनन्तर नवीन बिम्बों के समक्ष घी, गुड़, गन्ना सहित आटे के बनाए हुए चार दीपक स्थापित किए जाने चाहिए तथा उनके निकट सात सकोरों में मिष्ठान आदि रखे जाने चाहिए।
अधिवासना के समय क्या भावना करें- अधिवासना सम्बन्धी क्रिया करते हुए आचार्य अपनी शुभ शक्तियों को जिनबिम्ब में संचारित करते हैं। आचार्य जिन भावों से अधिवासना करते हैं दर्शनार्थियों के अन्तर्मन में वैसे ही विचार उत्पन्न होते हैं, इसलिए उस समय प्रतिष्ठाचार्य को उत्कृष्ट शुभधारा में रहना चाहिए।
इस विधान से जुड़े सभी लोगों को मंगल, कल्याण एवं श्रेयस की भावना करनी चाहिए।
मीढल आदि बांधते समय अशुभ शक्तियों का प्रभाव निस्तेज हो रहा है एवं शुभ परमाणुओं का जिनबिम्ब आदि में संचरण हो रहा है ऐसे भाव करने चाहिए। ___ अधिवासना सम्बन्धी लोक धारणाएँ- कई लोग मानते हैं कि अधिवासना के समय प्रतिमा में परमात्मा के शुद्ध अध्यवसायों अथवा प्राणों की स्थापना की जाती है, परन्तु यहाँ पर प्रतिष्ठाचार्य की साधना शक्ति का आरोपण किया जाता है।
. जिनबिम्बों के हाथ में बांधा गया कंकण डोरा रक्षा सूत्र की भाँति कार्य करता है ऐसी धारणा है।
परमात्मा के समक्ष उत्तम द्रव्यों का अर्पण करने से एवं दीपक आदि प्रज्ज्वलित करने से जिनबिम्ब का प्रभाव बढ़ता है ऐसा मानते हैं। जबकि पुष्पादि अर्पण एवं दीपक प्रज्वलन आदि द्रव्य पूजा का एक प्रकार है। जिन प्रतिमा का अलौकिक तेज तो दर्शनार्थियों के निर्मल विचार एवं जिनालय के पवित्र वातावरण आदि से बढ़ता है।