________________
474... प्रतिष्ठा विधि का मौलिक विवेचन
अधिवासना कब और कहाँ की जाए?- अधिवासना विधान प्रतिष्ठा के शुभ दिन अथवा प्रतिष्ठा की पूर्व रात्रि में किया जाता है। यह उत्तम अनुष्ठान शान्त एवं विशुद्ध वातावरण में करने से अधिक लाभदायी होता है।
यह अधिवासना विधि प्रतिष्ठा मंडप या रंग मंडप में जिनप्रतिमा पर की जाती है तथा इसे प्रतिष्ठाचार्य, व्रतधारी श्रावक, स्नात्रकार, विधिकारक एवं सुहागिन स्त्रियाँ मिलकर करते हैं।
अधिवासना में प्रयुक्त मुद्राएँ- इस क्रिया में अधिवासना मंत्र या सौभाग्य मंत्र बोलते हुए विलेपन पूजा करते हैं। फिर वास निक्षेप आदि करने के पश्चात कपाट मुद्रा और जिनमुद्रा के द्वारा शक्ति जागृत की जाती है। उसके बाद सूरिमंत्र अथवा वर्धमान विद्या से उनका न्यास किया जाता है। इसी क्रम में सौभाग्य मुद्रा का प्रयोग पृथ्वी आदि तत्त्वों के न्यास के लिए किया जाता है।
नूतन जिनबिम्बों के हाथ में मीढ़ल, मेनफल (कंकण डोरा) का बंधन क्यों?- अधिवासना करते समय प्रतिष्ठाचार्य नूतन बिम्बों के दाहिने हाथ में कंकण डोरा एवं जवमाला बाँधते हैं। यह मुख्यतया लोक व्यवहार में प्रयुक्त मांगलिक प्रक्रियाओं का अनुकरण लगता है। इस विधि का प्रवेश परिस्थिति सापेक्ष अन्य नेकाचारों के साथ हुआ प्रतीत होता है। विवाह आदि प्रसंगों में वरवधू के हाथ में भी कंकण डोरा बांधते हैं जो उन्हें बुरी नजर से बचाता है। शारीरिक या सर्प आदि का उपद्रव हो जाये तो हाथ में बंधी औषधियाँ विष नाशक होने से उनका तत्काल प्रयोग कर स्वस्थता प्रदान की जा सकती है। यह वर-वधु के पारस्परिक बंधन का भी सूचक है।
जिस प्रकार विवाहादि के प्रसंग पर वर-वधु की रक्षा के लिए कई यत्न किए जाते हैं वैसे ही प्रतिष्ठा के अवसर पर नूतन प्रतिमाओं के संरक्षणार्थ कंकण डोरा आदि विधियाँ सम्पन्न करते हैं। कंकण डोरे के द्वारा जिनबिम्बों को आसुरी शक्तियों एवं बुरी ताकतों से बचाया जाता है। यह क्रिया केवलज्ञान कल्याणक अनुष्ठान के समय की जाती है जो अरिहंत परमात्मा का मुक्ति रमणी से जुड़ने का सूचक है। यह डोरा भूत-ग्रह आदि की पीड़ा से भी रक्षा करता है। ___यह कंकण डोरा प्रतिष्ठा की निर्विघ्न पूर्णाहुति एवं मूर्तियों में संचारित शक्ति के स्थिरीकरणार्थ भी बांधा जाता है।