SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 536
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 470... प्रतिष्ठा विधि का मौलिक विवेचन निश्चित संख्या कही गई है। इनमें स्नात्रकार और कलश दोनों के लिए चार-चार की संख्या का निर्देश दिया गया है, जो संभवतः एक जिनबिंब की अपेक्षा से है, क्योंकि एक प्रतिमा के सुव्यवस्थित अभिषेक हेतु चार स्नात्रकारों एवं चार कलश परिमाण जल का होना आवश्यक प्रतीत होता है। किन्तु वर्तमान संकलित प्रतियों में इस सम्बन्धी संख्या का कोई निर्धारण नहीं है । आजकल प्रायः जितनी मूर्तियाँ होती हैं उतने अथवा उससे दुगुनी संख्या में स्नात्रकार होते हैं। पंचगव्य औषधि की दृष्टि से - सभी प्रतिष्ठा कल्पकारों ने गौमूत्र, गोबर, दूध, दही और घृत- इन पाँच द्रव्यों को पंचगव्य के रूप में स्वीकार किया है जबकि गणि सकलचन्द्र ने दूध, दही, मक्खन, घृत और छाछ - इन पाँच के समूह को पंचगव्य कहा है जो यथार्थ नहीं है क्योंकि इस पंचगव्य में मक्खन और घी तथा दही और छाछ भिन्न-भिन्न वस्तुएँ नहीं हैं, अपितु एक ही पदार्थ की अवस्था के दो भिन्न नाम हैं। वर्तमान में दूध, दही, घृत, शक्कर और पानी - इन पाँच को पंचामृत के रूप में मानते हैं। श्लोक संख्या की दृष्टि से श्री चन्द्रसूरि, जिनप्रभसूरि, वर्धमानसूरि आदि ने प्रत्येक अभिषेक हेतु एक श्लोक का उल्लेख किया है और उनमें प्रायः साम्य है, जबकि परवर्ती सकलचन्द्र गणि आदि के प्रतिष्ठाकल्पों में प्रत्येक अभिषेक के लिए प्राय: दो श्लोक बोलने का निर्देश है। उनमें एक श्लोक पूर्ववर्ती प्रतिष्ठा कल्पों से सम्बन्धित है तथा दूसरा भिन्न है। वर्तमान की संकलित कृतियों में दो श्लोक वाली प्रतियाँ अधिक हैं और आजकल लगभग इसी विधि को अपनाया जा रहा है। ध्यातव्य है कि श्लोक संख्या में वृद्धि होने से कुछ औषधियों के अतिरिक्त नाम भी प्राप्त होते हैं। चन्द्र-सूर्यदर्शन की दृष्टि से - पूर्ववर्ती प्रतिष्ठाकल्पों के अनुसार 15 अभिषेक होने के पश्चात जिन बिम्बों को दर्पण दिखाना चाहिए, किन्तु वर्तमान परम्परा में सूर्य के दर्शन करवाए जाते हैं ऐसा क्यों ? इसका मुख्य कारण यह है कि जब तीर्थंकर पुरुषों का जन्म होता है तब कुल परम्परा के अनुसार उन्हें तीसरे दिन चन्द्र-सूर्य का दर्शन करवाते हैं। कल्पसूत्र आदि आगमों में इस विषयक पाठ भी प्राप्त होता है जैसे " तइये दिवसे
SR No.006251
Book TitlePratishtha Vidhi Ka Maulik Vivechan Adhunik Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages752
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy