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अठारह अभिषेकों का आधुनिक एवं मनोवैज्ञानिक अध्ययन ... 457
बल, आयु एवं कान्तिवर्धक तथा स्मरणशक्तिवर्धक है। यह तेजस्वी एवं सौम्य होने के साथ-साथ रोग प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि करता है और विष विकार को दूर करता है।
यह प्राकृतिक गुणों के अनुसार मूर्ति पर भी प्रभाव डालता है। इससे प्रतिमा की तेजस्विता में वृद्धि होती है तथा मुख मुद्रा अधिक सौम्य एवं प्रभावी बनती है। यह नेत्रों की आकर्षण शक्ति बढ़ाती है जिससे दर्शनार्थियों पर विशेष प्रभाव पड़ता है। भावात्मक रूप से यह कषाय प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि करता है । विषनाशक होने से यदि इस मंगल विधान के अन्तर्गत किसी विषैले प्राणी का उपद्रव हो जाए तो तत्काल प्रयोग कर किसी भी अशुभ से बचा जा सकता है।
दूसरा अभिषेक
द्वितीय अभिषेक में प्रवाल (मूंगा), मोती, स्वर्ण, रजत और तांबा इन पंचरत्नों का प्रयोग किया जाता है। इनमें निम्न गुण हैं
प्रवाल- आयुर्वेद शास्त्र के अनुसार मूंगा सर्व दोषनाशक, कान्तिजनक, पुष्टिकारक एवं वीर्यवर्धक है। यह ऊपरी बाधाओं, जहर आदि से रक्षा करता है । इससे प्रतिमा के पत्थर में किसी प्रकार का दोष हो तो प्रकट हो जाता है तथा उसके तेज में वृद्धि होती है। इसके द्वारा मंगल कार्यों में उल्लास एवं अप्रमत्त दशा बढ़ती है तथा किसी प्रकार के ऊपरी उपद्रव से विघ्न उपस्थित नहीं होता ।
मोती- मोती आठ प्रकार के होते हैं और नवरत्नों में से एक रत्न है। यह स्वभावतः मधुर, शीतल, दृष्टिरोग विनाशक, आयु, वीर्य एवं कान्तिवर्धक तथा विषनाशक गुणवाला है। मोती के कुछ प्रकार दरिद्र हरण में भी कार्यकारी हैं । इस रत्न का स्पर्श होने से प्रतिमा शीतलता प्रदायक, चित्ताकर्षक एवं उग्रता विनाशक अतिशयों से युक्त बनती है। इससे वातावरण शांत, मनोरम भी बनता है।
मधुर एवं रजत- रजत एक सुप्रसिद्ध धातु है । पूर्वकाल से ही इसका प्रयोग जेवर और औषधि के रूप में होता है। चाँदी गुणों से स्निग्ध, शीतल, वात-पित्त नाशक और वन्ध्यत्व विनाशक है। इस धातु के प्रयोग से पत्थर में किसी प्रकार की रुक्षता हो तो नष्ट करता है तथा यह अभिषेककर्ता के क्रोध को शान्त कर स्मरण शक्ति को बढ़ाता है।