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I... प्रतिष्ठा विधि का मौलिक विवेचन ___बारहवें अध्याय में अठारह अभिषेक का चिंतन आधुनिक एवं मनोवैज्ञानिक परिप्रेक्ष्य में किया गया है। अठारह अभिषेक क्यों, अभिषेक के प्रकार, प्रतिमा अभिषेक की परम्परा कब से, अभिषेक क्रिया सावध है या नहीं, ऐसे अनेक विषयों का युक्ति पूर्वक निरूपण किया है। इसी के साथ अठारह अभिषेक क्रिया में प्रयुक्त विविध औषधियों का प्रभाव जिन प्रतिमा एवं अभिषेक कर्ता पर कैसे पड़ता है? उसके द्वारा शारीरिक एवं मानसिक व्याधियों का शमन किस तरह हो सकता है? इस तरह वर्तमान में प्रचलित अठारह अभिषेक विधि का प्रामाणिक स्वरूप प्रस्तुत करने का प्रयास किया गया है। स्वाध्यायी वर्ग इससे तत्सम्बन्धी अनेक छोटे-बड़े विधानों के रहस्यों का भी ज्ञान कर सकता है।
तेरहवें अध्याय के माध्यम से प्रतिष्ठा विषयक शंका-समाधान वर्तमान आवश्यकता के आधार पर किए गए हैं। प्रतिष्ठा सम्बन्धित प्रत्येक विधान जैसे- खनन, शिलान्यास, कुंभस्थापना, दीपक स्थापना, जवारारोपण, अधिवासना आदि अनेक विषयों की विस्तृत जानकारी सामान्य पाठक वर्ग की अपेक्षा से दी गई है। जिससे इन विधानों का शास्त्रीय स्वरूप जानकर तत्सम्बंधी क्रियाओं को अधिक मनोयोग पूर्वक किया जा सके। __चौदहवें अध्याय में प्रतिष्ठा विधान से सम्बन्धित उठती प्रासंगिक शंकाओं का समाधान किया गया है। जैसे कि जिनबिम्ब की प्रौंखण क्रिया किसलिए? जिन प्रतिमा के हाथ में सरसव पोटली क्यों बांधी जाए? मीढ़ल एवं मरडाशिंग बांधना जरूरी क्यों? आदि अनेक तथ्यभूत प्रश्नों पर विमर्श किया गया है। इनमें कई क्रियाएँ लोग व्यवहार के अनुकरण रूप तो कई महोत्सव में मंगल आदि की अपेक्षा से की जाती है।
इस अध्याय के द्वारा ज्ञान पिपासु वर्ग क्रियाओं का मात्र अनुकरण न करते हुए उनका सही समझ पूर्वक आचरण कर सकेगा।
पन्द्रहवें अध्याय में वर्तमान उपलब्ध प्रतिष्ठा कल्पों का समीक्षात्मक एवं ऐतिहासिक विवरण प्रस्तुत किया गया है। इसके द्वारा प्रतिष्ठा विधि की प्राचीनता एवं उसमें आए कालगत परिवर्तन आदि का सम्यक्ज्ञान हो जाता है।
सोलहवें अध्याय में सम्यक्त्वी देवी-देवताओं का शास्त्रीय स्वरूप दर्शाते हुए उस विषय में जैन धर्म की अवधारणा को स्पष्ट किया है। गृहस्थ के लिए सम्यक्त्वी देवी-देवताओं का स्थान कितना ऊँचा है और उनका सत्कार