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________________ 442... प्रतिष्ठा विधि का मौलिक विवेचन 21. जिने प्रातिहार्यस्थापन मंत्रः- ॐ नमो भगवते अर्हते असिआउसा जिनस्य प्रातिहार्याष्टकं स्थापयामि स्वाहा। ॐ यक्षेश्वराय स्वाहा। ॐ ह्रीं हूँ ह्रीं शासनदेव्यै स्वाहा। ॐ धर्मचक्राय स्वाहा। ॐ मृगद्वन्दाय स्वाहा। ॐ रत्नध्वजाय स्वाहा। ॐ नमो भगवते अर्हते जिने प्राकारादित्रयं स्थापयामि स्वाहा। 22. प्रतिष्ठादेवताविसर्जन मंत्रः- ॐ विसर विसर प्रतिष्ठादेवते स्वाहा। 23. नन्द्यावर्तविसर्जन मंत्रः- ॐ विसर विसर स्वस्थानं गच्छ गच्छ नन्द्यावर्त! पुनरागमनाय स्वाहा (मंत्रभणनपूर्वक) वासक्षेपेण विसर्जनम्।) 24. सामान्यदेवविसर्जन मंत्र__ यान्तु देवगणाः सर्वे, पूजामादाय मामकीम् । सिद्धिं दत्त्वा च महती, पुनरागमनाय च ।। __ विधि-विधानों की गरिमा को अखंडित बनाए रखने हेतु तथा पूर्वाचार्यों द्वारा निर्दिष्ट मार्ग की अक्षुण्णता हेतु सम्यक रूप से विधि-विधानों का पालन नितांत आवश्यक है। परन्तु सामान्य वर्ग प्राय: इन सबसे अपरिचित है। इसी के साथ वर्तमान में विधिकारकों की मत वैभिन्यता एवं धीरे-धीरे इनमें हो रहे परिवर्तनों के कारण श्रावक वर्ग दिग्भ्रमित हो रहा है। परन्तु आराधक वर्ग को मूल मार्ग एवं विधि का ज्ञान होना भी जरूरी है, ताकि वे अपने लिए सही मार्ग का चुनाव कर सकें। विधि-विधानों में देश- काल के अनुसार भी कुछ फेर-बदल हुए हैं। इन सभी का उल्लेख इस अध्याय में करते हुए प्रतिष्ठा विधियों का शास्त्रीय स्वरूप बताया है जिससे परम्परा की जानकारी हो और उन क्रियाओं के प्रति हम जागरूक बन सके। इसी भावना के साथ इस अध्याय का समापन भी किया है। सन्दर्भ-सूची 1. कल्याण कलिका, भा. 2, पृ. 1-3 2. (क) विधिमार्गप्रपा, पृ. 109-110 (ख) कल्याण कलिका, पृ. 5-8 3. कल्याण कलिका, पृ. 9-15 4. वही, पृ. 14-15 5. (क) निर्वाण कलिका, पृ. 23-24 (ख) कल्याण कलिका, भा. 2, पृ. 20
SR No.006251
Book TitlePratishtha Vidhi Ka Maulik Vivechan Adhunik Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages752
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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