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प्रतिष्ठा उपयोगी विधियों का प्रचलित स्वरूप ...427 ॐ झी किन्नरयक्ष! अवतर-अवतर तिष्ठ-तिष्ठ स्वाहा।
ॐ झी कंदर्पा देवी! अवतर-अवतर तिष्ठ-तिष्ठ स्वाहा।। 16. ॐ झी गरुडयक्ष! अवतर-अवतर तिष्ठ-तिष्ठ स्वाहा।
ॐ झी निर्वाणी देवी! अवतर-अवतर तिष्ठ-तिष्ठ स्वाहा।।
ॐ झी गन्धर्वयक्ष! अवतर-अवतर तिष्ठ-तिष्ठ स्वाहा। . ॐ झी अच्युता देवी! अवतर-अवतर तिष्ठ-तिष्ठ स्वाहा।।
ॐ झी यक्षेन्द्र! अवतर-अवतर तिष्ठ-तिष्ठ स्वाहा।
ॐ झी धारिणी देवी! अवतर-अवतर तिष्ठ-तिष्ठ स्वाहा।। 19. ॐ झी कुबेरयक्ष! अवतर-अवतर तिष्ठ-तिष्ठ स्वाहा।
ॐ झी वैरोट्या देवी! अवतर-अवतर तिष्ठ-तिष्ठ स्वाहा।। 20. ॐ झी वरुणयक्ष! अवतर-अवतर तिष्ठ-तिष्ठ स्वाहा।
ॐ झीं वरदत्ता देवी! अवतर-अवतर तिष्ठ-तिष्ठ स्वाहा।। ॐ झी भृकुटियक्ष! अवतर-अवतर तिष्ठ-तिष्ठ स्वाहा।
ॐ झी गन्धारी देवी! अवतर-अवतर तिष्ठ-तिष्ठ स्वाहा।। 22. ॐ झी गोमेधयक्ष! अवतर-अवतर तिष्ठ-तिष्ठ स्वाहा।
ॐ झी अम्बादेवी! अवतर-अवतर तिष्ठ-तिष्ठ स्वाहा।। 23. ॐ झी पार्श्वयक्ष! अवतर-अवतर तिष्ठ-तिष्ठ स्वाहा।
ॐ झी पद्मावती देवी! अवतर-अवतर तिष्ठ-तिष्ठ स्वाहा।। 24. ॐ झी मातंगयक्ष! अवतर-अवतर तिष्ठ-तिष्ठ स्वाहा। ॐ झी सिद्धायिका देवी! अवतर-अवतर तिष्ठ-तिष्ठ स्वाहा।।
॥ इति यक्ष-यक्षिणी प्रतिष्ठा विधि ।।
गणपति प्रतिष्ठा विधि जैन धर्म में सामान्यतया गणेश की पूजा-उपासना को मिथ्यात्व एवं श्रावक के लिए अतिचार (दोष) कहा गया है यद्यपि जिनालय स्थित गणपति की मूर्ति पूजनीय मानी गई है। यह गणपति दो भुजा, चार भुजा, छ: भुजा, नौ भुजा, अठारह भुजा एवं एक सौ आठ भुजा रूप अनेक प्रकार के होते हैं। इन सभी की प्रतिष्ठा विधि एक समान ही है।
गणपति कल्प के अनुसार गणेश की मूर्ति सोना, चाँदी, तांबा, जस्ता, काँच, स्फटिक, प्रवाल, पद्मराग, चन्दन, सफेद आँकड़ा आदि अनेक प्रकार की
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