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प्रतिष्ठा उपयोगी विधियों का प्रचलित स्वरूप ...419 . उसके पश्चात यक्षकर्दम से उसका लेप करें। फिर मंत्रपट्ट पर जो मंत्र लिखे हुए हैं उन्हीं मन्त्रों को सात बार बोलते हुए (पच्चीस वस्तुओं से निर्मित) वासचूर्ण डालकर प्रतिष्ठा करें। यदि पट्ट में किसी देव की मूर्ति खुदी हुई हो अथवा चित्रित हो तो पूर्वोक्त प्रकार से ही प्रथम अभिषेक करें। फिर 'ॐ ह्रीं अमुक देवाय नमः' - 'ॐ ह्रीं अमुक देव्यै नमः' इस प्रकार जिस देव या देवी की मूर्ति हो उस नाम के मंत्रोच्चार पूर्वक वासचूर्ण डालते हुए उसकी प्रतिष्ठा करें।
• यदि पट्ट वस्त्रमय हो अर्थात वस्त्र के ऊपर यंत्र, मंत्र अथवा मूर्ति आलेखित हो तो उसे दर्पण में प्रतिबिम्बित करके उस दर्पण बिम्ब का पूर्वोक्त रीति से स्नात्र करें, क्योंकि स्नात्र विधि के बिना प्रतिष्ठा अपूर्ण मानी जाती है। तदनन्तर पट्टोत्कीर्ण मंत्र के स्मरण पूर्वक वासचूर्ण डालते हुए उसकी प्रतिष्ठा करें।
• इसी तरह मखमल आदि के ऊपर जरी आदि से भरी हुई मूर्तियों की प्रतिष्ठा भी उपरोक्त विधि से ही करें।
___ सिद्धाचल, अष्टापद, सम्मेतशिखर आदि तीर्थों के पट्ट, सूरिमंत्र पट्ट, वर्धमान विद्या पट्ट आदि को उक्त विधि से ही प्रतिष्ठित किया जाता है।60
।। इति मंत्रपट्ट प्रतिष्ठा विधि ।।
साधुमूर्ति-स्तूप प्रतिष्ठा विधि आचार्य, उपाध्याय या साधु की मूर्ति चैत्य में अथवा उपाश्रय में स्थापित करनी हो अथवा उनके चरण पादुका स्तूप की प्रतिष्ठा करवाना हो तो उसकी विधि निम्न प्रकार है
• सर्वप्रथम मूर्ति और चरण पादुका का पंचामृत से प्रक्षाल करें। फिर उन्हें शुद्ध जल से धोकर पौंछे और फिर धूप प्रगटन करें।
• उसके पश्चात शुभ लग्न के आने पर आचार्य की मूर्ति या स्तूप की प्रतिष्ठा निम्न मंत्र को तीन बार बोलते हुए वासक्षेप पूर्वक करें।
ॐ नमो आयरियाणं भगवंताणं पाणीणं पंचविहायार सुट्टिआणं इह आयरिया भगवंतो अवयरंतु साहुसाहुणी सावयसावियकयं पूअं पडिच्छन्तु सव्व सिद्धिं दिसन्तु स्वाहा।
• शुभ लग्न में उपाध्याय मूर्ति या स्तूप की प्रतिष्ठा निम्न मंत्र को तीन