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प्रतिष्ठा उपयोगी विधियों का प्रचलित स्वरूप ...379 ऊपर वासचूर्ण डलवाएं। क्रियाकारक केसर-पुष्पादि से पूजा करें। गुरु महाराज दसों दिशाओं का दिग्बंधन करें। उसके पश्चात उपस्थित संघ से निम्न मंत्र को सात बार बुलवाएं
'ॐ ह्रीं श्रीं जीराउली पार्श्वनाथ! रक्षां कुरु-कुरु स्वाहा।' __ फिर निम्न मंत्र को सात बार बुलवाएं- 'ॐ कूर्म! निजपृष्ठे जिनबिम्ब धारय-धारय स्वाहा।'
फिर गुरु भगवन्त 'ॐ स्थावरे तिष्ठ-तिष्ठ स्वाहा'- इस मंत्र को सात बार बोलकर लग्न समय में श्वास रोकते हुए थाली बजवाएं तथा मंगल वाजिंत्र एवं शहनाईयों के स्वर के साथ जिनबिम्ब, ध्वजदंड, कलश, परिकर, देव देवी, मंगलमूर्ति, गूरु मूर्ति, गुरु पादुका आदि पर वासचूर्ण डालते हुए प्रतिष्ठा करें। - यदि गुरु मूर्ति, गणधर मूर्ति एवं गुरु पादुका की प्रतिष्ठा साथ में हो तो मन्दिर के चारों दिशाओं में चार गृहस्थों के द्वारा एक-एक श्रीफल बधराएं। गुरु मूर्ति के सन्मुख अक्षत की तीन ढ़गली करके उन पर सुपारी रखें।
माणक दीपक- मूलनायक भगवान के दाहिनी तरफ एक गोखले में 24 प्रहर के लिए अखंड दीपक प्रगटाएं। सकोरे के अंदर पहले से ही केसर का साथिया करके चावल, सुपारी, पंचरत्न की पोटली, सूत की बत्ती रखकर घी भर दें। निम्न श्लोक पढ़कर मंगल दीवा से उस दीपक को प्रज्वलित करें
ॐ अहँ पञ्चज्ञान महाज्योति-र्मयाय ध्वान्तघातिने ।
द्योतनाय प्रतिमायाः, दीपो भूयात् सदार्हते स्वाहा ।। अष्ट प्रकारी पूजा- फिर मूलनायक भगवान आदि की अष्ट प्रकारी पूजा करें। भगवान के सन्मुख एक चौकी पर अखंड एक लाख अक्षतों का साथिया बनाएं। उसके ऊपर 24 नैवेद्य, 108 सुपारी, मेवा का थाल, 24 फल, 9 श्रीफल आदि रखें।
कांसा की थाली में चाँदी का पैसा एवं गरम घी डालकर उसमें मूलनायक भगवान का मुख दिखाएं।
प्रतिष्ठा के बाद की विधि- फिर दो थालियों में कंकम भिगोकर तैयार रखें। उन्हें गुरु भगवन्त के द्वारा निम्न मंत्र से अभिमंत्रित करवाएं
'ॐ बिम्बस्थापकाय गृहाधिपतये सौख्यं कुरु-कुरु स्वाहा।' फिर सजोड़े जिनमंदिर और गर्भगृह में कुंकुम के छापे दिलवाएं। सौभाग्यवती नारियाँ प्रभुजी का पौंखणा करें। फिर आरती-मंगल दीपक करें।