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प्रतिष्ठा उपयोगी विधियों का प्रचलित स्वरूप ...365
फिर आचार्य भगवन्त आसन पर बैठकर नन्द्यावर्त्त के बाह्य सभी वलयों की कच्चे कर्पूर से पूजा करें। फिर उसके मध्य में चल बिम्ब की स्थापना करते हुए संकल्प पूर्वक प्रतिष्ठाप्य अचल बिम्ब की स्थापना करें ।
मूल विधि के अनुसार यहाँ नन्द्यावर्त्त का आलेखन और उसकी पूजा भी करते हैं। यह विधि विस्तृत होने से इसकी स्वतन्त्र चर्चा करेंगे।
जवारारोपण, कलश एवं दीपक स्थापना - नन्द्यावर्त्त पूजन के पश्चात बाहर की तरफ वेदिका के चारों कोनों में कुँवारी कन्या द्वारा काते गये सूत को चौगुना करके बांधें। फिर चारों दिशाओं में श्वेत स्थान के ऊपर जवारारोपण के सकोरों को स्थापित करें। चारों दिशाओं में एक के ऊपर एक इस प्रकार चारचार ऐसे कुल सोलह घड़े रखें। वेदी के चारों कोनों में 1. बाट ( लापसी ) 2. खीर 3.करम्ब 4. कसार 5.कूर 6. चूरमापिंड और 7. पूए - इन सात वस्तुओं से भरे हुए सकोरे रखें।
• तत्पश्चात चन्दन से अधिवासित कंकण, स्वर्ण मुद्रा, जल एवं वस्त्र से युक्त सोने या मिट्टी के चार कलश नन्द्यावर्त्त के चारों कोनों में स्थापित करें। • फिर घी, गुड़ युक्त प्रज्वलित चार मंगल दीपक नंद्यावर्त्त पट्ट की चारों दिशाओं में रखें।
• फिर चारों दिशाओं में चाँदी, कौडी, रक्षापोटली, जल एवं धान्य सहित चार कलश स्थापित करें। उनकी पूजा और कंकण बांधने की क्रिया सुकुमारिकाएँ करती हैं।
• फिर उनके ऊपर बोए हुए जवारों के चार सकोरे स्थापित करें और प्रत्येक को चौगूणे कौसुम्भसूत्र से वेष्टित करें।
प्राण प्रतिष्ठा - फिर शक्रस्तव से चैत्यवंदन करें। तत्पश्चात अधिवासना (प्राण प्रतिष्ठा) का समय निकट आ जाने पर जिनबिम्ब के हाथ पर ऋद्धि वृद्धि, मदनफल एवं अरिष्ट से निर्मित्त कंकण बांधें।
• फिर चन्दन से अधिवासित एवं पुष्पों से युक्त चौबीस हाथ परिमाण अखण्ड एवं नये श्वेत वस्त्र से बिम्ब को आच्छादित करें और एक मातृशाटिका से पार्श्वभाग को वेष्टित करें। फिर उन पर चंदन के छीटें डालें एवं पुष्पों से पूजन करें।
• तत्पश्चात गुरु निम्न मंत्र से बिम्ब के सभी अंगों पर हाथ रखकर उसकी प्राण प्रतिष्ठा करें