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364... प्रतिष्ठा विधि का मौलिक विवेचन अभिमन्त्रित चंदन लेकर दाएँ हाथ से प्रतिमा के सर्व अंगों पर आलेपन करें। चंदन को सूरिमंत्र या अधिवासना मंत्र से अभिमंत्रित करें।
अधिवासना मंत्र-ॐ नमः शान्तये हूँ यूँ हूँ सः।
सूरिमन्त्र- ॐ नमो पयाणुसारीणं, ॐ नमो कुट्ठबुद्धीणं, जमियं विज्ज पउंजामि सा मे विज्जा पसिज्जउ, ॐ अवतर-अवतर, सोमे-सोमे, कुरुकुरु, ॐ वग्गु-वग्गु निवग्गु सुमणे सोमणसे महुमहुरे कविल ॐ कक्षः कक्षः स्वाहा।
• तत्पश्चात जिनबिम्बों पर पुष्प चढ़ाएँ, धूप का उत्क्षेप करें, वासचूर्ण डालें और सुरभि मुद्रा दिखायें।
• फिर आचार्य खड़े होकर पद्म मुद्रा और अंजलि मुद्रा का दर्शन करवायें।
• फिर गुरु भगवन्त जिनबिम्ब के हाथों में प्रियंगु, कर्पूर एवं गोरोचन का लेप करें।
. फिर जिनबिम्ब के हाथों में कंकण डोरा बांधे। कंकण अभिमन्त्रित करने का मन्त्र यह है
ॐ नमो खीरासवलद्धीणं, ॐ नमो महुयासवलद्धीणं, ॐ नमोसंभिन्नसोईणं, ॐ नमो पयाणुसारीणं, ॐ नमो कुट्ठबुद्धीणं, जमियं विज्जं पउंजामि सा मे विज्जा पसिज्जउ, ॐ अवतर- अवतर, सोमे-सोमे, कुरु-कुरु, ॐ वग्गु-वग्गु निवग्गु सुमणे सोमणसे महुमहुरे कविल ॐ कक्षः कक्षः स्वाहा। अथवा ॐ नमः शान्तये हं क्षं हं सः।
कौसुम्भसूत्र, मदनफल एवं अरिष्ट से निर्मित्त कंकण का बन्धन बिम्ब के कण्ठ, बाहु, भुजा एवं चरणों में करें।
• फिर आचार्य 'ॐ स्थावरे तिष्ठ - तिष्ठ स्वाहा' इस स्थिरीकरण मंत्र से, मुक्ताशुक्ति मुद्रा से अथवा चक मुद्रा से जिनबिम्ब के मस्तक, दोनों स्कन्ध एवं दोनो घुटने- इन पांच अंगों को सात-सात बार स्पर्श करें।
इन सभी कृत्यों को करते हुए जिनबिम्ब के सम्मुख निरन्तर धूप देते रहें।
नद्यावर्त्त आलेखन एवं पूजन- परमेष्ठी मुद्रा से परमात्मा का आह्वान करें। आह्वान मंत्र निम्न है
ॐ नमोर्हत्परमेश्वराय चतुर्मुखपरमेष्ठीने त्रैलोक्यताय अष्टदिग्विभागकुमारी परिपूजिताय देवाधिदेवाय दिव्यशरीराय त्रैलोक्यमहिताय आगच्छ-आगच्छ स्वाहा।