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________________ प्रतिष्ठा उपयोगी विधियों का प्रचलित स्वरूप ...361 जिनबिम्ब प्रतिष्ठा विधि श्वेताम्बर परम्परा के प्रतिष्ठा कल्पों में जिनबिम्ब प्रतिष्ठा की विधि सर्वप्रथम पंचाशक प्रकरण में प्राप्त होती है, किन्तु यह अति संक्षेप में है। उसके पश्चात यह विधि निर्वाणकलिका में देखी जाती है जो संक्षिप्त होने के साथ इस परम्परा से प्रभावित है। तदनन्तर सुबोधासामाचारी, विधिमार्गप्रपा एवं आचार दिनकर आदि में उपलब्ध होती है। इनमें श्रीचन्द्राचार्य का अनुकरण करते हुए विधिमार्गप्रपा के रचयिता जिनप्रभसूरि ने यह विधि सम्यक् रुप से प्रतिपादित की है जो वर्तमान सामाचारी में भी प्रवर्तित है। आचारदिनकर गत प्रतिष्ठा-विधि में दिगम्बर भट्टारकों का अधिक प्रभाव है अतएव काल क्रम की प्राचीनता एवं शुद्ध आचार बद्धता को ध्यान में रखते हुए विधिमार्गप्रपा के अनुसार जिनबिम्ब की प्रतिष्ठा विधि कही जाएगी। प्रतिष्ठा के प्रारम्भिक चरण • प्रतिष्ठा की मूल विधि प्रारम्भ करने से पूर्व सर्वप्रथम नूतन जिनालय के चारों ओर उत्कृष्ट रुप से सौ धनुष परिमाण क्षेत्र की शुद्धि करें, मध्यम रुप से पचास धनुष एवं जघन्यत: पच्चीस धनुष अथवा सौ हाथ प्रमाण क्षेत्र की शुद्धि करें। क्षेत्र शद्धि की विधि इस प्रकार है___ शुद्ध मिट्टी निकलने तक भूमि खोदें। तत्पश्चात उसमें निकले हुए काष्ठ, अस्थि, चर्म, केश, नख, दन्त, तृण आदि जलाकर उसकी राख हटा दें और उस जगह श्वेत सुगन्धित मिट्टी डालें। फिर उसके ऊपर गौमूत्र डालते हुए गोबर से लीपकर शुद्ध करें। • फिर प्रमाणोपेत प्रतिष्ठा आदि मंडप बनवायें। उस मण्डप में नवीन बिम्बों को पूर्वाभिमुख अथवा उत्तराभिमुख स्थापित करें। उसके बाद चन्दन रस से नूतन बिम्बों के ललाट पर 'ॐ हीं तथा हृदय पर 'ॐ झें' इन मन्त्र बीजों का न्यास करें। फिर सुगन्धित जल एवं पुष्पादि अर्पण करते हुए उस भूमि की पूजा एवं सत्कार करें। • फिर उस देश, नगर या शहर में सात या दस दिन तक अमारि प्रवर्तन अर्थात किसी प्राणी की कोई हिंसा न करें- ऐसी घोषणा करवाएं। राजा अथवा नगर के अधिपति को बहुत भेंट देकर प्रतिष्ठा कार्य की अनुज्ञा प्राप्त करें। शिल्पिकारों का स्वर्णाभूषण एवं वस्त्र आदि द्वारा सम्मान करें।
SR No.006251
Book TitlePratishtha Vidhi Ka Maulik Vivechan Adhunik Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages752
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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