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360... प्रतिष्ठा विधि का मौलिक विवेचन
दिग्बंधन- तदनन्तर गुरु भगवन्त दसों दिशाओं में वासचूर्ण डालते हुए उनका दिग्बंध करें।
संपुट विधि- फिर सुहागिन नारियाँ मंदिर की देहलीज के ऊपर कुंकुम का साथिया करें। उसके ऊपर अक्षत का साथिया करें। फिर उसके ऊपर संपुट रखें। उस संपुटमय मिट्टी के सकोरे में अक्षत, कुंकुम, सुपारी, पंचरत्न की पोटली, चांदी पैसा, तांबा पैसा डालकर उसके ऊपर ढक्कन रुप में दूसरा सकोरा रखकर उन्हें मौली से अच्छी तरह बाँध दें।
बिम्ब प्रवेश के समय मुख्य लाभार्थी स्वयं के दाहिने पैर की एड़ी से संपुट को खण्डित कर प्रभु का प्रवेश करवाएं।
शकुन- प्रवेश के समय एक सौभाग्यवती नारी लाल, पीली या केसरिया साड़ी पहनकर अष्ट मंगल के घड़े में सवा रुपया, सुपारी, अक्षत, पुष्प डालें तथा छाने हुए पानी से उसे भरें। फिर उसके ऊपर नारियल रखें। प्रवेश के वक्त उस घड़े को स्वयं के मस्तक पर मोती की इंडाणी के ऊपर रखकर जिनबिम्ब को शकुन प्रदान करें। प्रवेश करवाने वाला भाग्यशाली उस बहन को बधाएं तथा चांदी का आभूषण देकर उसका बहुमान करें। __मंत्र का आलेख- क्रियाकारक जिनबिम्ब के पृष्ठ भाग पर 'ॐ श्रीं जीरावल्ली पार्श्वनाथ रक्षां कुरु कुरु स्वाहा' यह मन्त्र लिखें। गुरुमूर्ति एवं देव-देवी के पीछे 'ॐ ह्रीं श्रीं नमः' यह मन्त्र लिखें।
गुरु भगवन्त पबासन के ऊपर 'ॐ ह्रीं अर्हत्पीठाय नमः' कहकर वासचूर्ण डालें।
क्रियाकारक जिस चैत्य में प्रभु का प्रवेश हो वहाँ प्रत्येक जगह स्वर्ण जल के छीटें डालें तथा जहाँ-जहाँ जिनबिम्बों की स्थापना करनी हो वहाँ सभी जगह सौभाग्यवती नारी के द्वारा कुंकुम के स्वस्तिक करवाएं।
प्रभु प्रवेश- उसके पश्चात 'ॐ पुण्याहं पुण्याहं प्रीयन्तां प्रीयन्तां' इस मंगल पाठ का उद्घोष करते हुए मुहूर्त काल में श्वास को रोककर जिनबिम्ब का प्रवेश करवाएं। उस समय गुरु भगवन्त वासचूर्ण डालें। फिर सकल संघ के साथ चैत्यवन्दन करें। भीतों पर कुंकुम के थापे दिरावें। क्रियाकारक स्नात्र पूजा पढ़ावें, प्रभु की अष्टप्रकारी पूजा करें, आरती, मंगल दीपक एवं शांति कलश करके क्षमायाचना करें।19
॥ इति जिनबिम्ब प्रवेश विधि ।।