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330... प्रतिष्ठा विधि का मौलिक विवेचन
ॐ नमो अरिहंताणं शिरसि ॐ नमो सिद्धाणं मुखे ॐ नमो आयरियाणं सर्वांगे ॐ नमो उवज्झायाणं आयुधम् ॐ नमो सव्वसाहूणं वज्रमयं पंजरम् ।
बलि मन्त्रण एवं निक्षेपण - तदनन्तर गुरु निम्न मंत्र से बलि को इक्कीस बार अभिमन्त्रित करें। तत्पश्चात स्नात्र पूजा करने वाले श्रावक अभिमन्त्रित बलि को जलदान एवं धूपदान पूर्वक चारों दिशाओं में प्रक्षेपित करें।
बलि मन्त्र - ॐ ह्रीँ क्ष्वीं सर्वोपद्रवं बिम्बस्य रक्ष रक्ष स्वाहा । प्रतिमा पर पुष्पांजलि, जलोच्छाटन, अक्षत अर्पण, बिम्ब रक्षा एवं सप्तधान्यवृष्ट
फिर स्नात्रकार ‘नमोऽर्हत्.' मन्त्र एवं निम्न श्लोक पढ़ते हुए जिनबिम्बों पर पुष्पांजलि चढ़ायें।
कुसुमांजलि अर्पण छन्द
अभिनवसुगन्धि विकसितपुष्पौध भृता सुधूपगन्धाढ्या । बिम्बोपरि निपतन्ती सुखानि पुष्पाञ्जलिः कुरुताम् ।। उसके पश्चात गुरु नवीन बिम्बों के आगे दाहिने हाथ की मध्य दो अंगुलियों को खड़ी करके रौद्र दृष्टि से तर्जनी मुद्रा दिखायें।
तदनन्तर बाएँ हाथ में जल लेकर रौद्र दृष्टि से बिम्बों के ऊपर छींटें । फिर प्रतिष्ठाकारक गुरु स्नात्रकारों से बिम्बों का तिलक एवं पुष्पों से पूजा करवायें। फिर जिनबिम्ब को मुद्गर मुद्रा दिखायें।
उसके बाद बिम्बों के समक्ष अखंड चावलों से भरा हुआ थाल रखें तथा वज्र मुद्रा और गरुड़ मुद्रा से बिम्ब के नेत्रों की रक्षा करें।
फिर गुरु भगवन्त निम्न मन्त्र का उच्चारण करते हुए स्वयं के हाथों के स्पर्श से बिम्ब के सम्पूर्ण शरीर की रक्षा करें।
बलि मंत्र - ॐ ह्रीँ क्ष्वीं सर्वोपद्रवं बिम्बस्य रक्ष रक्ष स्वाहा ।
फिर दसों दिशाओं में भी तीन-तीन बार यह मन्त्र पढ़कर एवं पुष्प-अक्षत उछालकर दिग्बन्धन करें।
तदनन्तर श्रावकवर्ग या स्नात्र करने वाले पुरुष जिन प्रतिमा के ऊपर 1. सण 2. लाज 3. कुलथी 4. यव 5. कंगु 6. माष ( उड़द) और 7. सरसों- ऐसे सात धान्यों का प्रक्षेपण करें ।