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प्रतिष्ठा उपयोगी विधियों का प्रचलित स्वरूप... 325
हाथ 8 अंगुल ऊँचा होना चाहिए और यदि प्रतिमा 7-8-9 हाथ ऊँची हो तो तोरण 7 हाथ 12 अंगुल ऊँचा होना चाहिए।
तोरणद्वार की ऊँचाई को ही मंडप की ऊँचाई समझनी चाहिए।
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पूर्वादि दिशाओं के तोरण अनुक्रम से बड़, उम्बर, पारस पीपल और पीपल के होने चाहिए। शास्त्रों में इन तोरणों के नाम क्रमशः 1. शान्ति 2. भूति 3. बल और 4. आरोग्य है।
• तोरणों के ऊपर श्वेत अथवा विविध रंग की ध्वजाएँ लगवायें और ध्वजा के समीप गुलाबी, श्वेत, लाल, नीली, पीली आदि अनेक रंग की पताकाएँ (छोटी ध्वजाएँ) लगायें।
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पूर्वादि द्वारों के तोरणों पर संलग्न ध्वजाएँ अनुक्रम से 1. धर्म ध्वज 2. मान ध्वज 3. गज ध्वज और 4. सिंह ध्वज के नाम से प्रसिद्ध है। 5
तुलना - जिनालय में स्थापित की जाने वाली प्रतिमाओं के लिए प्रतिष्ठा से पूर्व कुछ विशिष्ट विधियाँ सम्पन्न की जाती है उसे पंच कल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव कहते हैं। इन कृत्यों को सम्पादित करने हेतु प्रतिष्ठा मंडप और सभा मंडप की रचना करते हैं। यह मंडप कहाँ, कैसा और किस परिमाण में होना चाहिए? इसकी विधि सर्वप्रथम निर्वाण कलिका में प्राप्त होती है । " उसके पश्चात इसी ग्रन्थ का अनुसरण करते हुए कल्याण कलिका में मंडप रचना की स्पष्ट विधि प्राप्त होती है। 7
दिगम्बर परम्परा में मंडप के अन्तर्गत यज्ञ क्रिया भी होती है। तदनुसार मण्डप की आकृति वर्गाकार तथा यज्ञ के लिए आहुतियों की संख्या के अनुरूप कुण्डों का निर्माण किया जाता है। यदि विशाल कुण्ड बनाये जाते हैं तो मण्डप का परिमाण भी तद्रूप बड़ा होता है। तदनुसार मण्डप के तोरण द्वार होते हैं और मण्डप के मध्य में वेदिका बनाते हैं। प्रतिष्ठासारोद्धार में यह विधि विस्तार से कही गई है।
आचार्य देवनन्दि के अनुसार पंच कल्याणक प्रतिष्ठा मण्डप का आकार 150 हाथ लम्बा और 100 हाथ चौड़ा होना चाहिए। 10
।। इति मंडप निर्माण विधि ||