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________________ 294... प्रतिष्ठा विधि का मौलिक विवेचन चाहिए। यदि बहुत जल्दी संभव न हो तो भी उत्सव के प्रथम दिन तो अवश्य बोने चाहिए। कुंभ स्थापना बाद में भी हो तो दोष नहीं है। • जवारा वपन करते समय निम्न मांगलिक गीत गाने चाहिए गंगानी माटी ने जमुनाना पाणी जवारा वावो तमे बाल कुमारी रे जेम जेम जुवारा लहे रे जाय रे तेम तेम गुरुजी ने हरख न माय रे। क्या संघे वाव्या ने क्या श्रावके सिंच्या, ......संघे वाव्या ने....सिंच्या । विशेष 1. यदि सिर्फ शांतिस्नात्र, कुंभ स्थापना आदि का प्रसंग हो तो चार सकोरों में जौ वपन करना चाहिए। यदि शांतिस्नात्र आदि के साथ ध्वजा दंड का पूजन हो तो आठ सकोरों में जौ वपन करना चाहिए तथा बिंब प्रवेश और चैत्य प्रतिष्ठा हो तो बारह सकोरों में जौ वपन करना चाहिए। 2. जौ उग आये उसके पश्चात कुंभ स्थापना के चारों ओर 4, वेदिका के ऊपर 4 तथा नई वेदी के स्थान पर 4 सकोरे कुमारिकाओं के हाथ से रखवाने चाहिए। 3. अर्वाचीन विधियों में ब्रह्मचारी अथवा ब्राह्मण के हाथ से जवारा बोने का उल्लेख है परन्तु प्राचीन कल्पों में ऐसा नियम नहीं है इसलिए निर्दोष एवं शुद्ध वस्त्रधारी कोई भी व्यक्ति जवारा वपन कर सकता है। परंतु यह विधि भावी फल के सूचन हेतु की जाती है इसलिए बाल कन्याओं से जौ वपन करवाना अधिक लाभकारी है। 4. आधुनिक विधियों में सात धान्य बोने का उल्लेख है परन्तु यह शास्त्रीय नहीं है। प्राचीन कल्पों में ‘यव वारका व्रीहियवांकुरमयाः' ऐसा वचन होने से जव और व्रीहि का वपन करना ही योग्य है। 5. जौ वपन महोत्सव के पहले कर दिया हो और उत्सव के प्रारम्भ में उग आये तो जल यात्रा में चार कलश के ऊपर 4 सकोरे रखने चाहिए, किन्तु आधुनिक विधिकारक प्राय: देरी से जवारारोपण करते हैं इसलिए जलयात्रा में कलशों के ऊपर नारियल और स्थापित कुंभ के चारों ओर 4 जवारा पात्र रखने की प्रवृत्ति शुरू हुई है।
SR No.006251
Book TitlePratishtha Vidhi Ka Maulik Vivechan Adhunik Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages752
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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