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282... प्रतिष्ठा विधि का मौलिक विवेचन
यदि वेदी का निर्माण न करवा सकें तो लकड़ी का बड़ा पट्टा रखकर उसके ऊपर तांबा या पीतल की पट्टी रखें। फिर उस पर अभिषेक का कार्य करें।
अभिषेक क्रिया- अभिषेक के लिए सोना, चाँदी, तांबा अथवा मिट्टी के पाँच या एक कलश में गंगा आदि महानदियों एवं शुभ तीर्थों का जल डालें। उस जल में सर्वौषधि चूर्ण, स्वर्ण रज, सुगंधित द्रव्य और सुगंधी पुष्प मिश्रित कर दें। . यहाँ औषधि के चूर्णादि से मिश्रित पवित्र जल को पहले एक बड़े घड़े में रखें। फिर उसके मुख को वस्त्र से आच्छादित कर उसके ऊपर हाथ रखते हुए बृहदशान्ति का पाठ बोलें। . तत्पश्चात उस जल से अभिषेक के कलश भरें। • शिलाओं-उपशिलाओं को पहले से ही वेदी के ऊपर यथास्थान रख दें।
• इस प्रकार शिलाओं के अभिषेक की पूर्ण तैयारी हो जाने पर मन्दिर निर्माता दोनों हाथों में जल कलश लेकर निम्न श्लोक बोलते हुए नन्दा शिला का अभिषेक करें
ॐ हिरण्यगर्भाः पवित्रः शुचयो दुरितच्छिदः ।
पुनन्तु शान्ताः श्रीमत्य, आपो युष्मान् मधुच्चुतः ।। • इसी तरह प्रत्येक बार कलश भरें और ऊपर का मंत्र श्लोक बोलकर अनुक्रमशः भद्रा आदि सभी शिलाओं का अभिषेक करें। शिलाओं के साथ में उनकी उपशिला एवं निधि कलश का भी अभिषेक कर लें। • सर्व शिलाओं के अभिषेक हो जाने पर उन्हें शुद्ध जल से प्रक्षालित करें और अच्छे वस्त्र से पौंछे। • उसके पश्चात उन पर केसर-चंदन के छींटे डालें, धूप का उत्क्षेप करें, पुष्प चढ़ाएँ और दिक्पालों के वर्णानुसार वस्त्र ओढ़ाएँ। • उसके बाद प्रत्येक उपशिला, शिला यगलों एवं निधि कलशों को अपने-अपने स्थान पर पहंचाएँ। इस तरह प्रतिष्ठा करने के लिए तैयारी रखें।
खड्डे में रखने योग्य सामग्री- शिलान्यास करने से पूर्व निम्न मंत्र श्लोक बोलकर क्रमश: नौ खड्डों में एक-एक पोटली रखें। प्रत्येक पोटली में पूर्वादि दिशाओं के अनुसार पृथक्-पृथक् रत्न, धातु, औषधि एवं धान्यादि रखें तथा मध्य खात में स्थापनीय पोटली के अन्तर्गत सभी प्रकार के रत्न बाँधे।
स्पष्टता के लिए पूर्वादि दिशाओं के सृष्टि क्रम से रत्नों में 1. हीरा 2. वैडूर्य 3. मोती 4. इन्द्रनील 5. महानील 6. पुखराज 7. गोमेद और 8. प्रवाल की स्थापना करें।