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अध्याय-11 प्रतिष्ठा उपयोगी विधियों का प्रचलित स्वरूप
विधि की महत्ता को सर्वत्र एवं सर्वोपरि स्वीकारा गया है। विधि पूर्वक किया गया कार्य ही सदा सफलता के शिखर पर पहुँचाता है। संसार के सामान्य से सामान्य व्यवहार में भी विधि को अत्यावश्यक माना गया है। परंतु कई लोग जैन विधि-विधानों की गहराई, रहस्य, प्रयोजन आदि न समझने के कारण उन्हें आगे-पीछे था जैसे-जैसे करने की बात करते हैं। कई लोग कहते हैं "इससे काम चल जाएगा न"। पर यह बात मात्र धर्म के क्षेत्र में ही उठती है, संसार के क्षेत्र में एक छोटी सी चूक भी उन लोगों को मान्य नहीं है। सब्जी में थोड़ा सा नमक ज्यादा हो जाए तो खाना बिगड़ जाता है, खाने-पीने में छोटी सी गफलत से शरीर बिगड़ जाता है, Account करते हुए यदि एक Zero मात्र इधर-उधर हो जाए तो पूरा घर और ऑफिस ऊपर-नीचे कर देते हैं तो फिर धर्म क्षेत्र में अविधि की तरफदारी क्यों? अविधि के परिणाम सदैव निराशाजनक ही होते हैं वह फिर चाहे धर्म क्षेत्र हो या व्यवहार का क्षेत्र। ___अरिहंत परमात्मा द्वारा प्रतिपादित विधि-विधान एवं धर्म क्रियाएँ भवोभव के Chronic महारोगों के क्षय की अक्सीर औषधि है। विधि एवं बहुमानपूर्वक जिन उपदिष्ट क्रियाएँ करने से कर्मों की निर्जरा होती है तथा धर्म क्रियाओं के प्रति आत्मरुचि बढ़ती है, चित्त प्रसन्न बनता है और आत्मा पावन बनती है। विधिपूर्वक क्रिया करने से प्रत्येक अनुष्ठान अमृत अनुष्ठान बन जाता है। इसी तथ्य को ध्यान में रखकर प्रतिष्ठा सम्बन्धी विधियों का प्रचलित स्वरूप प्रस्तुत किया जाता रहा है। जिससे सामान्य जनता उन विधियों के विषय में जानकर उन्हें यथोचित रूप से सम्पन्न कर सकें।
खात (खनन) मुहूर्त विधि जिनालय योग्य परीक्षित भूमि का स्वीकार भी विधि पूर्वक करना चाहिए, जिससे वहाँ निर्विघ्नत: जिन प्रासाद का निर्माण हो सके और वह शांतिदायक हो।